देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत और उन्नत बनाने के संकल्प में हर देशवासी निरंतर प्रयासरत है। व्यापार को बढ़ावा देने और इसे सुगम बनाने के लिए अनेक कदम उठाए जा रहे हैं। लेकिन इन व्यापार केंद्रित प्रयासों के चलते क्या श्रमिकों के मानवाधिकारों का हनन हो रहा है? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।
आज के इस लेख में हम इसी मुद्दे की पड़ताल एक हाल ही में प्रकाश में आई घटना के माध्यम से करेंगे।
हमारी टीम को सूचना मिली कि छत्तीसगढ़ राज्य के उद्योग एवं श्रम मंत्री के गृह जिले में स्थित एक बहुराष्ट्रीय कंपनी वेदांता के अंतर्गत कार्य करने वाले श्रमिकों को बुनियादी सुविधाएं, जैसे न्यूनतम वेतन, ESI, EPF, बोनस, अवकाश, सुरक्षा सामग्री, कैंटीन सुविधा और रेस्ट रूम जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखा गया है। कई वर्षों से इन श्रमिकों की भेद्यता का फायदा उठाकर उन्हें काम से निकालने की धमकी देकर जबरन काम करवाया जा रहा है।
जांच में सामने आए प्रमुख तथ्य:
- श्रमिकों को बाल्को टाउनशिप के दैनिक रखरखाव कार्यों, जैसे साफ-सफाई, सिविल/इलेक्ट्रिकल कार्य, गार्बेज सफाई, जल व्यवस्था, सीवर क्लीनिंग आदि में ठेकेदार के माध्यम से नियोजित किया गया है।
- इनमें से अधिकांश श्रमिक पिछले 3 से 10 वर्षों से कार्यरत हैं
- श्रमिकों की भविष्य निधि राशि वेतन से काटी गई पर उसे उनके भविष्य निधि खाते में जमा नहीं किया गया।
- श्रमिकों को ESI (Employees’ State Insurance) की सुविधा से वंचित रखा गया।
- किसी भी ठेकेदार द्वारा बोनस, अवकाश नगदीकरण प्रदान नहीं किया गया।
- सुरक्षा सामग्री भी प्रदान नहीं की गई।
- रेस्ट रूम की कोई सुविधा नहीं है।
- कैंटीन की कोई सुविधा नहीं है।
- अन्य कर्मियों की भांति गेटपास न प्रदान कर भेदभाव किया जा रहा है।
- श्रमिकों द्वारा इन कृत्यों की शिकायत अपने श्रमिक संगठन, बाल्को कर्मचारी संघ (बी.एम्.एस) के माध्यम से जिला श्रम विभाग एवं भविष्य निधि आयुक्त एवं जिला जनदर्शन अधिकारी के समक्ष भी की गई। परन्तु कार्यवाही की सूचना अप्राप्त है।
- श्रमिकों द्वारा जनवरी माह में आंदोलन करने के पश्चात ठेकेदार द्वारा हाजरी कार्ड, वेतन पर्ची, सुरक्षा जूते देना प्रारंभ किया गया है, परन्तु पूर्व का बकाया भुगतान/भविष्य निधि राशि/बोनस/अवकाश नगदीकरण, गेटपास, कैंटीन सुविधा, रेस्ट रूम नहीं दिया जाकर, वेदांता प्रबंधन द्वारा मना किया गया है।
- सीवरेज में कार्य करने वाले श्रमिकों द्वारा बताया गया कि उन्हें गटर में उतारते वक्त आवश्यक सुरक्षा सामग्री, ऑक्सीजन तक प्रदान नहीं की जाती है।
अंतर्राष्ट्रीय मानकों, जैसे ILO कन्वेंशन 29, के अनुसार, जो भारत सरकार द्वारा भी पुष्टि किया गया है, उपरोक्त कृत्य जबरन मजदूरी (Forced Labour) की श्रेणी में आते हैं।
मानवाधिकारों के स्पष्ट उल्लंघन का कृत्य होने और शिकायतों पर भी कोई कार्यवाही न होने पर कुछ स्वाभाविक प्रश्न उठते हैं:
- क्या जिला श्रम विभाग, Ease of Doing Business की पॉलिसी को श्रमिकों के अधिकारों के हनन की कीमत पर लागू करना चाहता है?
- क्या श्रम मंत्री को अपने विभाग के अधिकारियों की व्यापारियों के साथ मिलकर श्रमिकों के अधिकारों के हनन के कृत्यों की जानकारी है?
- क्या भविष्य निधि विभाग इन अपराधिक कृत्यों पर रोक लगाने में अक्षम है?
- क्या भविष्य निधि विभाग में ट्रस्टी रहने वाले श्रमिक प्रतिनिधि इन कृत्यों पर कुछ अंकुश लगा पाएंगे?
- क्या वेदांता प्रबंधन को ठेकेदार के इन कृत्यों की जानकारी थी, प्रमुख नियोक्ता होने के कारण क्या वेदांता प्रबंधन भी इसमें शामिल है?
- क्या मानवाधिकार विभाग इस पर कड़ी कार्यवाही करेगा?
यह कुछ प्रश्न हैं जिनका उत्तर आने वाले वक्त में ही मिलेगा। फिलहाल यह एक विडंबना ही कही जा सकती है कि आजादी के अमृत महोत्सव के काल में ऐसे कृत्य अभी भी विद्यमान हैं।
आसानी से व्यापार करने की नीति ने निस्संदेह भारत के आर्थिक विकास को सुविधाजनक बना दिया है, लेकिन इसका कार्यान्वयन श्रमिकों के अधिकारों और गरिमा की कीमत पर नहीं होना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि नीति निर्माता उद्यमशीलता को बढ़ावा देने और प्रगति के इंजन – श्रमिकों के हितों की रक्षा के बीच संतुलन बनाए रखें। EoDB के दुष्प्रभावों को पहचानकर और उनसे निपटने के लिए व्यावहारिक कदम उठाकर, हम एक मजबूत, अधिक न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं, जहां हर कोई भारत की आर्थिक वृद्धि से लाभ उठा सके।
नमस्कार
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