भारत में बाघों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है, जो संरक्षण प्रयासों की एक बड़ी सफलता मानी जा सकती है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) और कई गैर-सरकारी संगठनों के सतत प्रयासों के कारण बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है। जहां एक ओर यह खबर उत्साहजनक है, वहीं दूसरी ओर, बाघों के रहवास (वासस्थान) की कमी चिंता का विषय बनती जा रही है।
बाघों की संख्या में वृद्धि
भारत में बाघों की संख्या पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ी है। वर्ष 2018 में जारी की गई ऑल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बाघों की संख्या 2,967 हो गई थी, जो 2014 के मुकाबले 33% अधिक थी। वहीं 2022 में यह आंकड़ बढ़कर 3,682 हो गया है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि भारत बाघ संरक्षण के प्रयासों में सफल रहा है। सरकार द्वारा बाघ अभयारण्यों के विकास, शिकार पर कड़े प्रतिबंध और स्थानीय समुदायों के साथ समन्वय ने इस वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
घटता रहवास: एक गंभीर समस्या
बाघों की संख्या में वृद्धि के साथ ही उनका प्राकृतिक रहवास तेजी से घट रहा है। वनों की अंधाधुंध कटाई, शहरीकरण, और औद्योगिकीकरण ने बाघों के प्राकृतिक आवास को संकुचित कर दिया है। इसके परिणामस्वरूप, बाघों को अपने रहवास से बाहर निकलने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे मानव-बाघ संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं। जंगलों के बीच में सड़कें, रेलवे लाइनें और अन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण बाघों के आवास को खंडित कर रहा है, जिससे उनका स्वतंत्र रूप से विचरण करना कठिन हो गया है।
मानव-बाघ संघर्ष
रहवास के घटने से बाघों का मानव बस्तियों की ओर रुख करना भी बढ़ रहा है। यह न केवल बाघों के लिए खतरनाक है, बल्कि मानव जीवन और संपत्ति के लिए भी गंभीर खतरा उत्पन्न करता है। किसानों की फसलें और पालतू जानवरों पर बाघों के हमले की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिससे ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग बाघों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने लगे हैं। परिणामस्वरूप, बाघों की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम और संरक्षण के प्रयास बाधित हो सकते हैं।
संरक्षण के लिए आगे की राह
बाघों के संरक्षण के लिए हमें न केवल उनकी संख्या बढ़ाने पर ध्यान देना होगा, बल्कि उनके प्राकृतिक रहवास को भी सुरक्षित और संरक्षित रखना होगा। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाने की आवश्यकता है:
वन क्षेत्रों का विस्तार और पुनर्वास: वनों के संरक्षण और विस्तार पर जोर देना आवश्यक है। बाघों के प्राकृतिक आवास को पुनर्जीवित करना और वन्यजीव गलियारे (वाइल्डलाइफ कॉरिडोर) बनाना महत्वपूर्ण होगा।
स्थानीय समुदायों के साथ समन्वय: ग्रामीण समुदायों को बाघ संरक्षण के लाभों के बारे में जागरूक करना और उन्हें इस प्रक्रिया में शामिल करना जरूरी है। सरकार को इन्हें वैकल्पिक आजीविका के साधन प्रदान करने चाहिए ताकि वे जंगलों पर निर्भरता कम कर सकें।
मानव-बाघ संघर्ष प्रबंधन: मानव-बाघ संघर्ष को कम करने के लिए प्रभावी रणनीतियां बनानी होंगी। इसके तहत सुरक्षित बाड़ों का निर्माण, घनी आबादी वाले क्षेत्रों से बाघों का स्थानांतरण, और प्रभावित लोगों को मुआवजा देने जैसी नीतियां शामिल की जा सकती हैं।
प्रौद्योगिकी का उपयोग: आधुनिक तकनीकों जैसे ड्रोन और कैमरा ट्रैप का उपयोग करके बाघों की गतिविधियों पर निगरानी रखी जा सकती है। इससे उनके व्यवहार को समझने और समय रहते उपाय करने में मदद मिलेगी।
बाघों की संख्या में वृद्धि एक सराहनीय उपलब्धि है, लेकिन इसके साथ-साथ उनके रहवास की सुरक्षा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। हमें संतुलित और दीर्घकालिक समाधान की ओर बढ़ना होगा ताकि बाघों की बढ़ती संख्या और उनका प्राकृतिक आवास दोनों ही संरक्षित रह सकें। इससे ही हम आने वाली पीढ़ियों के लिए बाघों को बचा सकेंगे और उनके साथ प्रकृति का संतुलन बनाए रख सकेंगे।
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