
कोरबा। खनिज विभाग और पर्यावरण विभाग की साठगांठ से कोरबा जिले में जल स्रोत को पाटने और सरकारी नियम-कायदों का मखौल उड़ाने का बड़ा मामला सामने आया है। सत्ता के रसूख और निजी कंपनी की मिलीभगत से नियमों को धता बताकर एक खदान में अवैध तरीके से राख डंप कराई जा रही है। अफसर आंखें मूंदे बैठे हैं और सरकारी तंत्र पूरी तरह बिक चुका है।
पोड़ीउपरोड़ा विकासखंड के ग्राम कोनकोना में दिलीप बिल्डकॉन को सड़क निर्माण के लिए दी गई अस्थायी खदान अब भारी गड़बड़ी का अड्डा बन चुकी है। खनिज विभाग ने खसरा नंबर 9/1 (शासकीय भूमि) में अनुमति दर्शाई, लेकिन हकीकत में खनन निजी भूमि (खसरा नंबर 28/3/ग और 31/4) में कराया गया। यानी जिस जमीन में शासन की अनुमति थी, वहां कुछ नहीं — और जहां मन आया, वहां खुदाई!
राख डंपिंग के नाम पर जल स्रोत का कत्ल
खनन के बाद खदान में भरा पानी निकाले बिना ही हर रोज 60-70 हाइवा राख डंप कर रहे हैं। न माइनिंग प्लान का पालन, न पर्यावरण नियमों की परवाह। अफसरों ने मिलकर सीधा जल स्रोत में ही राख भरवाना शुरू कर दिया। सरकारी नियम कहते हैं — जलभराव खत्म कर समतल ज़मीन पर मोटी प्लास्टिक की परत बिछा कर ही राख डंपिंग की जा सकती है। लेकिन यहां सत्ता और पैसे के दबाव में नियमों को कूड़ेदान में डाल दिया गया।
खनिज अफसरों की मिलीभगत, NOC का खेल
मौजूदा जिला खनिज अधिकारी प्रमोद नायक ने ट्रांसपोर्टर के दबाव में दो-दो निजी कंपनियों को एनओसी दे डाली। न केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के 2019 के दिशा-निर्देशों की चिंता, न पर्यावरणीय सुरक्षा की। और पर्यावरण विभाग ने भी मूक समर्थन देते हुए आनन-फानन में राख डंपिंग की मंजूरी थमा दी। सत्ता के इशारे पर सारा सिस्टम गुलाम बन बैठा है।
अवैध रॉयल्टी चोरी और रातोंरात मिट्टी की तस्करी
इतना ही नहीं, खदान की मिट्टी-गिट्टी भी चोरी-छिपे ट्रैक्टर-ट्रॉली से रातोंरात बाहर बेची जा रही है। शासन को लाखों की रॉयल्टी का सीधा नुकसान। ना कोई रॉयल्टी काटी जा रही, न खनिज विभाग के रिकॉर्ड में दर्ज। अवैध कारोबारियों और खनिज अफसरों की इस मिलीभगत ने सरकारी खजाने को भी लूट लिया।
शिकायतों के बाद भी अफसरों की चुप्पी
ग्रामीण और जागरूक नागरिक बार-बार शिकायत कर चुके हैं, लेकिन जिला प्रशासन, खनिज विभाग और पर्यावरण विभाग सब मौन। सत्ता के इशारे पर अवैध डंपिंग धड़ल्ले से जारी है।
सत्ता के दबाव में पर्यावरण और सरकारी खजाने की खुली लूट
कोरबा जिले में खनिज और पर्यावरण विभाग ने सत्ता के दबाव और निजी कंपनियों के हक में सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ा दी हैं। जल स्रोत बर्बाद हो रहे, पर्यावरण संकट में है और शासन को लाखों का नुकसान… लेकिन अफसरों ने आंखें बंद कर ली हैं।
कब जागेगा प्रशासन ? कब थमेगी सत्ता संरक्षण में पर्यावरण और खजाने की यह खुली लूट?
