November 8, 2024 |

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छत्तीसगढ़

भोरमदेव वन्यप्राणी अभ्यारण्य को टाईगर रिजर्व घोषित करने की याचिका पर हुई सुनवाई

कोर्ट ने कहा बाघों का संरक्षण समय की मांग है, देश में कुछ ही बाघ बचे हैं कोर्ट ने राज्य को अतिरिक्त शपथ पत्र प्रस्तुत करने का 4 सप्ताह का समय दिया

Gram Yatra Chhattisgarh
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रायपुर। भोरमदेव को टाईगर रिजर्व घोषित करने हेतु रायपुर के नितिन सिंघवी दायर की गई जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की मान. मुख्य न्यायाधीश एवं न्यायामूर्ति गौतम भादुड़ी की युगल पीठ को राज्य की तरफ से बताया गया कि वहां के बैगा आदिवासी तथा वनवासी टाईगर रिजर्व घोषित करने से प्रभावित होंगे। टाईगर रिजर्व घोषित करने के लिये ग्राम सभा की सहमति नहीं मिली है। कोर्ट ने कहा कि सहमति, असहमति और स्वीकृति में फर्क होता है। बाघों का संरक्षण समय की मांग है, देश में कुछ ही बाघ बचे है। कोर्ट ने राज्य को अतिरिक्त शपथ पत्र एवं याचिकाकता को रिजवाईन्डर प्रस्तुत करने का 4 सप्ताह का समय दिया।
भोरमदेव अभ्यारण्य के बारे में:
351 वर्ग कि.मी. में फैला भोरमदेव अभ्यारण्य का इलाका, राज्य विभाजन के पूर्व कान्हा नेशनल पार्क का महत्वपूर्ण बफर जोन होने के कारण पूर्णतः सुरक्षित था, बाघों की आवजाही इस क्षेत्र में तभी से होती रही है। यह क्षेत्र इन्द्रावती टाईगर रिजर्व, महाराष्ट्र के नवेगांव-नागझीरा और तडोबा-अंधेरी टाईगर रिजर्व तथा कान्हा से अचानक मार्ग टाइगर रिजर्व आने जाने का बाघों का महत्वपूर्ण कोरिडोर है। छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद इसे वर्ष 2001 में भोरमदेव अभ्यारण्य बनाया गया। वन्यजीवों की आवाजाही को देखते हुए वर्ष 2007 में इसका क्षेत्रफल बढ़ा दिया गया।
एनटीसीए द्वारा भोरमदेव अभ्यारण्य को टाईगर रिजर्व घोषित करने की 28 जुलाई 2014 को की गई अनुशंसा तथा राज्य वन्यजीव संरक्षण बोर्ड की 14 नवम्बर 2017 की सहमति के बावजूद राज्य सरकार द्वारा भोरमदेव अभ्यारण्य को टाईगर रिजर्व को घोषित करने के प्रस्ताव को 9 अप्रैल 2018 को रद्द कर देने के विरूद्ध सिंघवी ने जनहित याचिका दायर की है।
विस्थापन नीति:
विस्थापित किये जाने वाले ग्रामीणों को 5 एकड़ कृषि भूमि, 50 हजार नगद इन्सेन्टिव, 1 मकान, आधारभूत सुविधाऐं जैसे मार्ग, शाला, बिजली-सिंचाई साधन, शौचालय, पेयजल व्यवस्था, सामुदायिक भवन आदि प्रदान की जाती है। शासन, जंगल के प्रत्येक गांव मंे यह सुविधा नहीं पहुंचा पाता है अतः विस्थापन बाद ग्रामीणों का जीवन स्तर बहुत उठ जाता है तथा उनके बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त करते है। अगर ग्रामीण यह पैकेज नहीं चाहता हो तो उसे रूपये 10 लाख विस्थापन का मुआवजा दिया जाता है। इसके साथ ही वनों और वन्यजीवों का संरक्षण होता है तथा टूरिज्म उद्योग को बढ़ावा मिलता है।

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