छत्तीसगढ़

पवित्र भवानी मंदिर की पावन भूमि भी नहीं बची राखड़ माफिया ब्लैक्समिथ की गंदी चालों से

 

 

कोरबा शहर को राखड़ के प्रदूषण में डुबोने के बाद भी ब्लैक्समिथ का आतंक थमा नहीं। इस बार उन्होंने सीधे पवित्र भवानी मंदिर के पास की ज़मीन और सिंचाई विभाग की भूमि को निशाना बनाया। पहले तो उन्होंने इन पावन स्थलों को राखड़ से पूरी तरह से पाट दिया, और फिर यह सोचकर कि कोई शिकायत न करे, मंदिर की भूमि से अवैध रूप से मिट्टी खोदकर वहां डाल दी। कहते हैं भगवान के घर देर है अंधेर नहीं, और अब बरसात में ब्लैक्समिथ कॉर्पोरेशन के सारे काले कारनामे उजागर हो रहे हैं।

उक्त तस्वीर में साफ़ दिखाई दे रही भूमि सिंचाई विभाग की है, जहां बोर्ड पर साफ़ शब्दों में लिखा है कि राखड़ डालना सख्त मना है। लेकिन, ब्लैक्समिथ के लोग बिना किसी डर के सरकारी ज़मीन पर धड़ल्ले से राखड़ पाटते रहे। इस भूमि के नीचे वह महत्वपूर्ण पाइपलाइन बिछी हुई है, जिससे पूरे कोरबा शहर को पानी की आपूर्ति की जाती है। राखड़ के इस गैरकानूनी भराव ने आसपास के पर्यावरण और लोगों के जीवन को गंभीर खतरे में डाल दिया है।

 

यह मामला सिर्फ यहीं नहीं थमता। इस ज़मीन के पीछे एक किसान का छोटा सा खेत भी है, जहां वह अपनी आजीविका के लिए फसल बोता है। लेकिन, इस बेरहम राखड़ ने किसान की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया। राखड़ के खेत में जमा होने से उसकी फसल पूरी तरह से नष्ट हो रही है। इतना ही नहीं, यह राखड़ बहकर नज़दीकी नदी में मिल रहा है, जिससे आस-पास के लोग साफ़ पानी का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। इस राखड़ ने उनकी जिंदगी को जहरीला बना दिया है।

 

इसके अलावा, इस भूमि पर अवैध रूप से जो मिट्टी डाली गई है, वह भवानी मंदिर की पवित्र भूमि से ली गई है। डेंगुरनाला में भी बाल्को ऐश डाइक से लाखों टन राखड़ का अवैध भराव किया गया है, जिसके लिए सागोन वृक्षारोपण क्षेत्र और अन्य सरकारी जगहों से मिट्टी चोरी की गई है। इसका सबूत उस क्षेत्र में हाई टेंशन टावर के पास बना एक विशाल गड्ढा है, जो इस अवैध खनन का प्रमाण है।

 

  • अब सवाल उठता है, इतनी बड़ी अवैध गतिविधियों के बावजूद ब्लैक्समिथ कंपनी के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? क्या पैसों का प्रभाव, राजनीतिक दबाव और शक्तिशाली लोगों का संरक्षण इतना मजबूत है कि आम लोगों की ज़िंदगी और पर्यावरण की बर्बादी की कोई कीमत नहीं रह गई? कलेक्टर, माइनिंग ऑफिसर, वन विभाग, और अन्य सरकारी अधिकारी इस मुद्दे पर खामोश क्यों हैं? आखिर कौन सी ताकत है जो इन अधिकारियों को इस अवैध कारोबार के खिलाफ कोई कार्रवाई करने से रोक रही है? क्या अब इंसानियत और पर्यावरण की सुरक्षा का कोई मतलब नहीं रह गया है?

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