अपराधछत्तीसगढ़

कमिश्नर साहिबा, आपके अफसर-कर्मियों ने ठेकेदार को उपकृत करने बिना स्वीकृति कर दिया 53.45 लाख रुपये का फर्जी भुगतान, निगम एक्ट का उल्लंघन कर गबन करने वालों पर क्यों हैं मेहरबान, 7 दिन में जांच-कार्यवाही नहीं तो… 

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कोरबा। नगर निगम के तत्कालीन अधिकारियों ने षडयंत्र रच न केवल ठेकेदार को उपकृत किया, बिना वैध स्वीकृति 53.45 लाख रुपये का फर्जी भुगतान भी कर दिया। भ्रष्टाचार के इस बड़े मामले को निगम प्रशासन अरसे से दबाए बैठा है। सूचना के अधिकार में जानकारी जुटाई गई, तो पता चला कि पूर्व में रहे साकेत के सबसे प्रभारी बड़े अफसर से लेकर कई छोटे-बड़े कर्मी इसमें शामिल हैं, जिन्होंने निगम एक्ट का उल्लंघन कर साफ तौर पर गबन की श्रेणी का अपराध किया है। इन अफसरों पर कौन और क्यों मेहरबान रहा, यह जांच की मांग कई बार उठाई जाती रही। बावजूद इसके किसी ने शिकायत की वह फाइल खोलना तो दूर देखने की भी जहमत नहीं उठाई। मामले की शिकायत ग्राम यात्रा छत्तीसगढ़ न्यूज नेटवर्क के संपादक एवं भारती श्रमजीवी पत्रकार संघ कोरबा के जिलाध्यक्ष अब्दुल सुल्तान ने की थी, पर मौजूदा आयुक्त की चुप्पी तोड़ने और इसकी त्वरित जांच के कदम उठाने का आग्रह करते हुए उन्होंने दूसरा स्मरण पत्र लिखा है। पत्र में फर्जी अवैध भुगतान करने, निगम की राशि का गबन करने की जांच कर दोष सिद्ध होते ही सीधे अपराध पंजीबद्ध कराने की मांग आयुक्त से की गई है। साथ में चेतावनी भी दी गई है कि अगर निगम प्रशासन द्वारा 7 दिवस के भीतर मामले में जांच आदेश नहीं दिए गए तो वे न्यायालय का दरवाजा खटखटाने विवश होंगे।

फर्जी एवं अवैध भुगतान तथा गबन पर अपराध पंजीबद्ध न करने के संबंध में नगर पालिक निगम की आयुक्त को यह द्वितीय स्मरण पत्र ग्राम यात्रा छत्तीसगढ़ न्यूज नेटवर्क के संपादक एवं भारती श्रमजीवी पत्रकार संघ कोरबा के जिलाध्यक्ष अब्दुल सुल्तान ने लिखा है। पत्र में अवगत कराया गया है कि नगर निगम के विभिन्न वाहनों के संचालन के लिए वाहन चालक, ऑपरेटर एवं हेल्पर रखने टेंडर बुलाए गए थे। जिसे लेकर प्रमाणित दस्तावेजों के साथ शिकायत की गई थी। इस शिकायत को करीब 18 माह बीत जाने बाद भी जांच प्रारंभ नहीं किया गया है। यह लेटलतीफी तात्कालीन अफसरों के भ्रष्ट्राचार में सम्मलित होने की ओर इंगित करता है। यही वजह है जो श्री सुल्तान ने यह स्मरण पत्र  तथ्यों समेत इस विश्वास के साथ प्रस्तुत किया है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच की जाएगी और किसी लोभ या द्वेषवश पूर्व में कार्रवाई न करने वाले अफसर-कर्मियों की भूमिका का परीक्षण भी किया जाएगा। श्री सुल्तान का कहना है कि उन्होंने दिसंबर 2022 में इस मामले की शिकायत की थी, पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं की गई। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि पूर्व के अधिकारियों ने अपने निजी हित को ध्यान में रखते हुए कार्रवाई नहीं किया, जिससे उनकी भूमिका भी सवालों के कटघरे में है, जिसकी जांच होनी चाहिए। श्री सुल्तान ने बताया है कि इस फर्जी भुगतान अथवा गबन की जानकारी उनके संज्ञान में आने पर इसकी पुष्टि के लिए वे पिछले 2-3 साल से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांग रहे हैं, पर उन्हें लगातार सूचना के उनके अधिकार से वंचित किया जाता रहा। इसके बाद अब से करीब 20 माह पूर्व उन्हें सूचना के अधिकार के तहत जानकारी प्राप्त हुई है। सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त इन सभी तथ्यों के दस्तावेजों की छायाप्रति सूची बनाकर इस आवेदन के साथ संलग्न किया गया।

मन किया तो मनमानी, अनुबंध की शर्तें दरकिनार कर बढ़ा दी चालक, जेसीबी ऑपरेटर की दरें

इस पत्र में फर्जी एवं अवैध भुगतान के गबन का विवरण भी दिया गया है। जिसके अनुसार नगर पालिक निगम कोरबा के विभिन्न वाहनो के संचालन के लिए वाहन चालक, ऑपरेटर एवं हेल्पर रखने का टेंडर काफी निम्न दर पर मेसर्स वायके अग्रवाल, बालाजी रोड कोरबा का प्राप्त हुआ। जिसमें मेसर्स वायके अग्रवाल को वार्षिक दर प्रति वाहन चालक का प्रतिदिन 335 रुपये, जेसीबी ऑपरेटर 395 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान करने का अनुबंध किया गया था। आश्चर्यजनक ढंग से माह जुलाई 2018 से दर में बढ़ोतरी कर वाहन चालक का प्रतिदिन 519 रुपये, जेसीबी ऑपरेटर 519 रुपये प्रतिदिन तथा हेल्फर का भी वाहन चालक के हिसाब से भुगतान कर दिया गया। इसी तरह अंतिम देयक तैयार किया गया। इस तरह कुल राशि एक करोड़ 48 लाख 36 हजार 337 रुपये भुगतान किया गया है। गौर करें कि अनुबंध के अनुसार कार्य विस्तार के बाद यह राशि एक करोड़ तीन लाख 6 हजार 213 रुपये होती थी। इस प्रकार कुल 45 लाख 30 हजार 124 रुपये के करीब फर्जी और अवैध भुगतान किया गया है। इसी तरह ठेकेदार मेसर्स वायके अग्रवाल को 53 लाख 45 हजार 425 रुपये का अनुबंध के तहत कार्य आदेश दिया गया था। पर फाइनल बिल 1 करोड़ 48 लाख 36 हजार 337.24 रुपये का भुगतान किया गया है। इस भुगतान के लिए सक्षम स्वीकृति भी नहीं ली गई है। यह स्पष्ट तौर पर निविदा अनुबंध व निगम एक्ट के नियमों के उल्लंघन की श्रेणी में आता है। 

नियम 1998 की कंडिका 05 के नियमानुसार इस तरह से अवैध सिद्ध

छत्तीसगढ़ नगर पालिका (मेयर इन कॉउसिंल, प्रेसिडेन्ट इन कॉउसिंल के कामकाज तथा प्राधिकारियों की शक्तियां एवं कर्तव्य) नियम 1998 के कंडिका 05 के (च) उप कंडिका में मेयर इन कॉउसिंल सह प्रेसिडेन्ट इन कॉउंसिल की वित्तीय शक्तियों तथा स्वीकृति से संबंधित समस्त विषय निगम-परिषद की आगामी बैठक में सूचना के लिए रखे जाएंगे। ऐसा करने में असफल होने पर उक्त व्यय अवैध माना जाएगा। इसके बावजूद उक्त भुगतान परिषद की बैठक सामान्य सभा में प्रस्तुत ही नहीं कराया गया। इस प्रकार कुल व्यय की राशि 1 करोड़ 48 लाख 36 हजार 337.24 रुपये की परिषद की बैठक में सूचना हेतु ही नहीं रखा गई है। अतः संपूर्ण व्यय सक्षम परिषद सूचना प्रस्तुतिकरण के अभाव में अवैध है। इसके फलस्वरूप किया गया भुगतान गबन की श्रेणी में आता है। इस प्रकार अनुबंध की राशि से 53 लाख 45 हजार 425 रुपये बढ़ाकर राशि 1 करोड़ 48 लाख 36 हजार 337.24 रुपये का भुगतान छत्तीसगढ़ नगर पालिक (मेयर इन कॉउंसिल, प्रेसिडेन्ट इन कॉउसिंल के कामकाज तथा प्राधिकारियों की शक्तियाँ एवं कर्तव्य) नियम 1998 के कंडिका 05 के नियमानुसार अवैध सिद्ध होता है।

मेयर, एमआईसी सदस्य व तत्कालीन प्रभारी आयुक्त समेत ये हैं जवाबदार

आम नागरिकों द्वारा दिए गए शुल्क एवं कर से प्राप्त नगर निगम की इस धन राशि का अवैध भुगतान एवं गबन सिद्ध होता है। अब्दुल सुल्तान आरोप लगाया है कि उपरोक्त कृत्य मेयर इन काउसिंल, तत्कालिन आयुक्त, मुख्य लेखा अधिकारी, लेखा अधिकारी, वाहन शाखा के अधिकारी व ऑडिट के अधिकारी के द्वारा एकराय होकर किया गया है। इनका षडयंत्र रचते हुए नगर निगम कोरबा की धनराशि का अवैध भुगतान कर गबन का कृत्य कारित किया गया है। उन्होंने आयुक्त से आग्रह किया है कि तत्कालीन महापौर एवं मेयर इन काउंसिल के सदस्य, तत्कालीन प्रभारी आयुक्त, तत्कालीन मुख्य लेखा अधिकारी पी.आर. मिश्रा, तत्कालीन लेखा अधिकारी आनंद गुप्ता, तत्कालीन वाहन शाखा के अधिकारी, तत्कालीन ऑडिटर मेसर्स बोरकर एण्ड मजुमदार मुम्बई, मेसर्स वायके अग्रवाल, वाहन शाखा के इस कृत्य में सम्मिलित अन्य अधिकारी एवं कर्मचारियों,  ऑडिट शाखा के इस कृत्य में सम्मिलित अन्य अधिकारी एवं कर्मचारियों के विरूद्ध एकराय होकर षडयंत्र पूर्वक फर्जी व अवैध भुगतान करने, निगम की राशि का गबन करने के संबंध में जांच कराकर दोष सिद्ध होते ही सीधे अपराध पंजीबद्ध कराया जाए।

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