
कोरबा। सरकारी ठेकेदारी में अनुभव प्रमाणपत्र की अहम भूमिका होती है, लेकिन जब इसी कड़ी को ठेकेदार अपने हक में तोड़-मरोड़कर पेश करने लगे, तब सवाल केवल भ्रष्टाचार पर नहीं, पूरे सिस्टम की चुप्पी पर उठने लगते हैं।
सुशील कुमार शुक्ला, निवासी राताखार, कोरबा — वही नाम है जिसने नगर पंचायत छुरीकला में 2020-21 से 2023 तक श्रमिक आपूर्ति का ठेका लिया। इस कार्य के लिए उसे रुपये 1.12 करोड़ से अधिक की राशि का भुगतान भी हुआ और 04 मार्च 2024 को उसे अनुभव प्रमाण पत्र भी मिल गया।
तो फिर सवाल उठता है – जब प्रमाण पत्र पहले ही मिल चुका था, तो 25 जुलाई 2025 को एक नया अनुभव प्रमाण पत्र बनवाने की जरूरत क्यों पड़ी ?
यह नया प्रमाण पत्र सिर्फ अनुभव का नहीं, बल्कि जोड़तोड़ और फर्जीवाड़े का नमूना बन गया। इसमें पुराने काम को ही फिर से दिखाया गया, लेकिन इस बार ‘15 वार्डों में स्वीपिंग व क्लीनिंग’ का काम भी जोड़कर, यह साबित करने की कोशिश की गई कि ठेकेदार न केवल श्रमिक सप्लायर है बल्कि सफाई व्यवस्था भी उसने संभाली थी — जो कि मूल अनुबंध में था ही नहीं!
अब ध्यान दीजिए —
🔸 नया सीएमओ आते ही भौकाल में अनुभव जारी कर दिया शिकायत के बाद जब उन्होंने फाइलें पलटीं, तो पूरा खेल उजागर हो गया।
🔸 केवल 5 दिन बाद, यानी 30 जुलाई 2025 को नए अनुभव प्रमाण पत्र को “अपरिहार्य कारणों” से निरस्त कर दिया गया।
🔸 मगर तब तक यह फर्जी प्रमाण पत्र, ठेकेदार ने कोरबा नगर निगम, जल जीवन मिशन और अन्य जगहों पर ठेका हथियाने में इस्तेमाल कर लिया।
तो सवाल ये हैं –
👉 जब फर्जीवाड़ा उजागर हुआ तो एफआईआर क्यों नहीं हुई ?
👉 जब प्रमाण पत्र फर्जी पाया गया, तो उसके आधार पर मिले सभी ठेकों को निरस्त क्यों नहीं किया गया ?
👉 क्या निगम अधिकारियों की मिलीभगत से इस ठेकेदार ने पूरे सिस्टम को चूना लगा दिया ?
👉 जब एक ही अवधि, एक ही भुगतान और एक ही कार्य के लिए पहले से अनुभव पत्र मौजूद था, तो दूसरा प्रमाण पत्र क्यों जारी किया गया – और किसके कहने पर ?
सूत्रों की मानें तो नगर निगम परिषद को जब सच्चाई पता चली, तो उन्होंने तुरंत अनुभव प्रमाण पत्र रद्द कर दिया। लेकिन तब तक कई विभागों में इस फर्जी दस्तावेज की छाया में ठेकेदार ने ठेके झटक लिए।
अब जरूरी है –
🛑 सीधे एफआईआर हो, ताकि इस तरह का सुनियोजित दस्तावेजी फर्जीवाड़ा एक उदाहरण बने।
🛑 जिन ठेकों में इस फर्जी प्रमाणपत्र को आधार बनाया गया, सभी को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाए। और ऐसे ठेकेदारों को ब्लेक लिस्ट कर इनका समस्त भुक्तान रोक कर विशेष जांच कराई जाएं।
🛑 और जिन अधिकारियों ने अनुभव प्रमाणपत्र जारी किया, उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
अगर इस पर कार्रवाई नहीं होती, तो यह शासन की पारदर्शिता और ईमानदारी की मंशा पर एक गहरा सवाल बनकर चिपक जाएगा।
शासन अगर वाकई “जीरो टॉलरेंस” की नीति पर चलता है, तो इस मामले में एक दिन की भी देरी अपराध है।
वरना यह मान लेना चाहिए कि ठेकेदारी में फर्जीवाड़ा ही नया अनुभव बन गया है।
