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पूर्व IAS की बेटी पर बड़ा आरोप! फर्जी एसटी सर्टिफिकेट से बनीं जिला पंचायत अध्यक्ष

मोहला में उठा बड़ा बवाल, जांच की उठी मांग

मोहला, 8 जून 2025 : छत्तीसगढ़ के मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी जिले में फर्जीवाड़े का एक सनसनीखेज मामला सामने आया है। जिला पंचायत अध्यक्ष नम्रता सिंह जैन पर आरोप है कि उन्होंने फर्जी अनुसूचित जनजाति (एसटी) प्रमाण पत्र का इस्तेमाल कर चुनाव लड़ा और आरक्षित सीट से जीतकर अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज हो गईं।

शिकायत के अनुसार, नम्रता सिंह द्वारा प्रस्तुत एसटी प्रमाण पत्र 26 दिसंबर 2019 को जारी हुआ था, लेकिन उसकी वैधता पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। आरोप यह भी है कि यह प्रमाण पत्र तत्कालीन संयुक्त कलेक्टर चंद्रिका प्रसाद बघेल द्वारा बिना उचित सत्यापन के जारी कर दिया गया था, जो अब भ्रष्टाचार के दायरे में आ गया है।

IAS की बेटी, ओडिशा में जन्म, फिर भी छत्तीसगढ़ की ST सीट पर काबिज ?

शिकायतकर्ता का कहना है कि नम्रता सिंह के पिता स्व. नारायण सिंह ओडिशा के मूल निवासी थे और 1977 बैच के आईएएस अधिकारी रहे। 1950 से पहले परिवार का छत्तीसगढ़ से कोई संबंध नहीं है – न निवास प्रमाण, न राजस्व रिकॉर्ड, और न ही ग्राम सभा की अनुशंसा।

संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार, एक राज्य की अनुसूचित जनजाति पहचान दूसरे राज्य में मान्य नहीं होती। यानी ओडिशा की जनजातीय पहचान छत्तीसगढ़ में वैध नहीं है। फिर भी प्रमाण पत्र जारी होना गंभीर सवाल खड़ा करता है।

758 मामलों में 267 फर्जी प्रमाण पत्र – अब जिला पंचायत में फर्जीवाड़ा ?

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2000 से 2020 तक छत्तीसगढ़ में 758 फर्जी एसटी प्रमाण पत्र के मामले उजागर हुए हैं, जिनमें से 267 प्रमाण पत्र रद्द किए गए। ऐसे में मोहला का यह ताजा मामला प्रशासनिक व्यवस्था की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर करारा प्रहार करता है।

क्या अब गिरेगी अध्यक्ष पर गाज ?

एसडीएम मोहला द्वारा 26 मई 2025 को जारी पत्र में जांच समिति के गठन की पुष्टि की गई है। शिकायतकर्ता ने मांग की है कि जांच 15 दिनों के भीतर पूरी कर दोषी पाए जाने पर तुरंत कार्रवाई हो। साथ ही पंचायत राज अधिनियम के तहत अध्यक्ष को पदमुक्त किया जाए।

शिकायतकर्ता की 5 बड़ी माँगें :

  1. फर्जी प्रमाण पत्र की वैधता पर 15 दिनों में उच्च स्तरीय जांच।
  2. सर्टिफिकेट फर्जी पाए जाने पर तत्काल रद्द किया जाए।
  3. नम्रता सिंह को अध्यक्ष पद से अयोग्य घोषित किया जाए।
  4. भारतीय दंड संहिता (BNS), SC/ST एक्ट और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कानूनी कार्यवाही हो।
  5. सभी संबंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक किया जाए ताकि पारदर्शिता बनी रहे।

यदि यह आरोप सिद्ध होता है, तो यह मामला केवल एक व्यक्ति विशेष का नहीं बल्कि सामाजिक न्याय, संवैधानिक व्यवस्था और प्रशासनिक जवाबदेही पर गहरा प्रश्नचिन्ह है। यह संविधान के अनुच्छेद 14, 342 और 243D का संभावित उल्लंघन भी प्रतीत होता है।

अब निगाहें जिला प्रशासन पर टिकी हैं कि वह इस गंभीर और संवेदनशील मामले पर क्या कार्रवाई करता है।

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