कोरबा, 5 जुलाई 2024 – भारत एल्यूमीनियम कंपनी लिमिटेड (बाल्को), जो कभी एक गौरवशाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी थी, अब निजीकरण के बाद संघर्ष और विवादों के दलदल में फंस गई है। बाल्को का इतिहास विशेष एल्यूमीनियम मिश्र धातुओं के विकास और देश की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता था। लेकिन अब, वेदांता समूह के अधीन, यह कंपनी कर्मचारियों के शोषण और पर्यावरणीय मुद्दों का प्रतीक बन गई है।
वेतन समझौते में गड़बड़ियाँ
बाल्को के 11वें वेतन समझौते ने कर्मचारियों और प्रबंधन के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है। बाल्को कर्मचारी संघ (BMS) और एल्यूमीनियम कर्मचारी संघ (AITUC) ने इस समझौते को अवैध और कर्मचारी विरोधी करार दिया है। BMS का आरोप है कि वेदांता प्रबंधन ने औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए यह समझौता किया है। इसके परिणामस्वरूप, वर्तमान स्थायी कर्मचारियों की संख्या में भारी गिरावट आई है और ठेका श्रमिकों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है।
स्थायी कर्मचारियों की संख्या में भारी कमी
कभी 7000 स्थायी कर्मचारियों का गर्व करने वाली बाल्को अब केवल 700 स्थायी कर्मचारियों के साथ काम कर रही है। दूसरी ओर, ठेका श्रमिकों की संख्या 7000 तक पहुँच गई है। यह दर्शाता है कि बाल्को की मौजूदा कर्मचारी भर्ती नीति का उल्लंघन हो रहा है। प्रबंधन ने उत्पादन क्षमता बढ़ाने के नाम पर श्रमिकों पर अतिरिक्त दबाव डालते हुए अनुचित श्रम अभ्यास को बढ़ावा दिया है।
कैंटीन शुल्क में वृद्धि
वेतन समझौते में कैंटीन शुल्क में 20% की वृद्धि ने 7000 से अधिक कर्मचारियों को प्रभावित किया है, जबकि भत्ते में वृद्धि केवल 700 स्थायी कर्मचारियों के लिए की गई है। यह न केवल फैक्टरी अधिनियम का उल्लंघन है, बल्कि कर्मचारियों के कल्याण के प्रति प्रबंधन की उदासीनता को भी दर्शाता है। कैंटीन शुल्क में इस वृद्धि से अस्थायी और ठेका श्रमिकों पर भारी वित्तीय बोझ पड़ेगा, जिनका वेतन पहले से ही न्यूनतम है।
पर्यावरणीय और सामाजिक विवाद
निजीकरण के बाद से बाल्को कई विवादों में घिर गई है। इनमें विधानबाग इकाई और एल्युमिना रिफाइनरी का बंद होना, चिमनी का ध्वस्त होना, जंगल भूमि का अनधिकृत उपयोग, और पर्यावरणीय प्रदूषण शामिल हैं। प्रबंधन द्वारा अवैध राख डंपिंग और पर्यावरणीय मानकों का उल्लंघन कंपनी की छवि को धूमिल कर रहे हैं। स्थानीय समुदाय और पर्यावरणीय संगठनों ने बाल्को के खिलाफ कई बार विरोध प्रदर्शन किए हैं, लेकिन प्रबंधन ने इन मुद्दों को सुलझाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
अधिकारियों की असफलता
वेदांता प्रबंधन के अधीन, बाल्को की स्वर्णिम विरासत का अंत हो चुका है। प्रबंधन के उच्च अधिकारियों द्वारा जारी किए गए बयानों में भले ही उत्पादन में वृद्धि का दावा किया जा रहा हो, लेकिन कर्मचारियों और स्थानीय समुदायों के कल्याण की अनदेखी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। प्रबंधन ने कर्मचारियों पर भविष्य की उत्पादन क्षमता का बोझ डालते हुए, उन्हें अनुचित श्रम विभाजन का शिकार बना दिया है। इसके अलावा, उत्पादन प्रक्रिया में बदलाव और कर्मचारियों को किसी भी संस्था में स्थानांतरित करने का अधिकार भी अनुचित श्रम अभ्यास का हिस्सा हैं।
अनुशासनात्मक कार्यवाही का दबाव
बीएमएस संघ द्वारा उठाए गए विवाद में एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि प्रबंधन ने कर्मचारियों पर उत्पादों की गुणवत्ता के अस्वीकृति का बोझ डाल दिया है, जो अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए कारक उत्पन्न करते हैं। कर्मचारियों को उत्पाद की गुणवत्ता के मुद्दों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, जो वास्तव में प्रबंधन और उत्पादन प्रक्रिया की खामियों का परिणाम हैं। इससे कर्मचारियों में असुरक्षा और असंतोष बढ़ रहा है।
अप्रत्यक्ष रोजगार के बढ़ते मामले
बाल्को के विस्तार परियोजना के दौरान जारी EIA रिपोर्ट में दावा किया गया था कि परियोजना के पूरा होने के बाद 3000 कर्मचारियों को रोजगार मिलेगा। लेकिन वास्तविकता में, वेतन समझौते 11 में उल्लेख किया गया है कि वर्तमान कर्मी ही भविष्य के उत्पादन को प्राप्त करने के लिए प्रयास करेंगे। यह स्पष्ट संकेत है कि बाल्को प्रबंधन द्वारा प्रत्यक्ष रोजगार को अप्रत्यक्ष रोजगार में बदलने की नीति अपनाई जा रही है।
अंधकारमय भविष्य
बाल्को के श्रमिकों, स्थानीय समुदाय और स्थानीय निवासियों के लिए भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है। स्वर्णिम विरासत का अंत हो चुका है और अब केवल उम्मीद की जा सकती है कि आने वाला समय बाल्को के लिए कुछ बेहतर ला सकेगा। लेकिन वर्तमान परिस्थितियाँ इस उम्मीद को भी धुंधला कर रही हैं। वेदांता प्रबंधन की नीतियाँ और उनके द्वारा किए गए वादों की पूर्ति में असफलता ने कंपनी को एक संकटग्रस्त स्थिति में पहुंचा दिया है।
बाल्को का यह परिवर्तन, जहाँ एक ओर उत्पादन में वृद्धि और आर्थिक लाभ की बात की जाती है, वहीं दूसरी ओर कर्मचारियों और पर्यावरणीय मुद्दों की अनदेखी ने कंपनी की स्वर्णिम विरासत को समाप्त कर दिया है। अब देखना यह होगा कि बाल्को का भविष्य किस दिशा में जाता है और क्या यह कंपनी अपने पुराने गौरव को फिर से प्राप्त कर पाती है या नहीं ।
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