केंद्र सरकार की आयुष्मान योजना से पहले ही प्रधानमंत्री जन ओषधि केंद्र ने दम तोड़ दिया
बिलापसुर। केंद्र सरकार की आयुष्मान योजना से पहले ही प्रधानमंत्री जन ओषधि केंद्र ने दम तोड़ दिया
बिलापसुर केंद्र सरकार की आयुष्मान योजना से पहले ही प्रधानमंत्री जन ओषधि केंद्र ने दम तोड़ दिया , लोगों को सस्ती दवाइयाँ उपलब्ध कराने की नियत से खोला गया जन ओषधि केंद्र में दवाई नही होने से कर्मचारी सिम्स के दवाई काउंटर में भेज रहे है ।
भारत सरकार की महत्वाकांक्षी योजना जन औषधि केंद्र बिलासपुर में भी बंद होने की कगार पर पहुंच गई है। यहां आठ औषधि केंद्र में से पांच बंद हो चुके हैं वही सिम्स जिला अस्पताल में संचालित केंद्र भी बंद होने की राह में है जो रोजाना खुलते जरूर है किन्तु दवाइयाँ स्टाक में उपलब्ध है । ओपीडी से परामर्श लेकर डॉक्टर द्वारा लिखी दवाइयां लेने जब मरीज जनओषधि केंद्र के काउंटर में पहुँचते है तो वहां मौजूद कर्मचारी एक भी दवा नही होने का हवाला देकर सिम्स एमआरडी में संचालित निशुल्क दवा दूकान में भेज रहे है । जब जनओषधि केंद्र में मौजूद महिला कर्मचारी से दवाईयां नही होने का कारण पूछने पर बताया की दिल्ली से सभी दवाइयाँ आने की बात कही।
गौरतलब है की प्राइवेट हो या शासकीय अस्पताल यहां मौजूद डॉक्टर मरीज की हैसियत को देखकर नही बल्कि उसकी मर्ज को देखते हुए दवा लिखते है चाहे दवा सस्ती हो या फिर महंगी , जिसे हर कीमत पर खरीदना मजूबरी रहती है , लेकिन गरीब तबके के लोगों को काफी परेशानी होती है ऐसे लोगों को राहत देने केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री जनओषधि केंद्र सभी जिला और ब्लॉकों में खोलने का निर्णय लिया , टेंडर जारी कर संस्था या जिस किसी भी व्यक्ति को ठेका दिया उसे दवाइयाँ सप्लाई करने की जिम्मेदारी ब्यूरो ऑफ़ फार्मा पीएसयू ऑफ़ इंडिया की है परन्तु जब से जन ओषधि केंद्र का आगाज हुआ है बीपीपीआई संस्था से दवाई न मिलने की वजह से योजना कुछ ही माह में सिमट कर रह गया है लोगों में आक्रोश भी है की जिस योजना का आमजनों को लाभ नही मिल पा रहा है उसे चलाने का फायदा ही क्या है ।
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बिलासपुर में सिम्स, जिला अस्पताल सहित सभी ब्लॉक में जन औषधि केंद्र खोले गए जिससे गरीबों को सस्ती दवा मुहैया कराई जा सके। लेकिन यहां तो हाल ही उल्टा हो गया। मरवाही, गौरेला, मस्तूरी, कोटा तथा तखतपुर ब्लॉक में खोले गए जन औषधि केंद्र बंद हो चुके हैं। सिर्फ पेंड्रा ब्लॉक में ही यह केंद्र संचालित हाे रहा है।
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जन औषधि केंद्र का संचालन रेडक्रॉस के हवाले है। जो सिम्स में दो दवाई दूकान संचालित कर रहा है लेकिन सोचनीय विषय यह है प्राइवेट कंपनी द्वारा ली गई दवा दूकान धड़ल्ले से चल रहा है पर शासकीय जन ओषधि केंद्र में दवा तक उपलब्ध नही है रेडक्रॉस ने सभी जगह 5-5 हजार के वेतन पर फार्मासिस्ट नियुक्त कर दिए। लेकिन ज्यादातर डॉक्टर ब्रांडेड दवाएं ही मरीजों को लिखने का काम करते हैं, इसलिए इन केंद्रों पर दवा लेने कम संख्या में लोगों के पहुंचने से आय-व्यय का संतुलन गड़बड़ा गया और यह केंद्र बंद करने पड़ गए।
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