जयसिंह अग्रवाल की राजनीति और धार्मिक आस्था का तालमेल उनकी सत्ता में रहते हुए चमकता दिखता था, लेकिन विधानसभा चुनाव में हार के बाद उनकी भक्तिभावना और राजनीतिक सक्रियता दोनों ही कमजोर पड़ते नजर आ रहे हैं। कोरबा के पूर्व राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल द्वारा स्थापित छत्तीसगढ़ महतारी मंदिर की दुर्दशा और उपेक्षा ने जनता के बीच उनकी असलियत उजागर कर दी है। राज्य स्थापना दिवस के मौके पर सूबे के एकमात्र छत्तीसगढ़ महतारी मंदिर में न तो कोई श्रद्धा के फूल चढ़ाने आया, न कोई अगरबत्ती जलाने वाला मिला, न ही कोई राजनेता कदम रखने आया।
जयसिंह अग्रवाल ने अपने राजनीतिक करियर में इस मंदिर का उपयोग केवल सत्ता प्राप्ति के साधन के रूप में किया था। 11 अगस्त 2018 को जब इस मंदिर का भव्यता के साथ प्राण प्रतिष्ठा करवाई गई थी, तब इसे स्थानीय जनता के लिए गौरव का प्रतीक बताया गया था। मंदिर का निर्माण शांतिदेवी मेमोरियल समिति द्वारा किया गया, जिसका संचालन खुद जयसिंह अग्रवाल करते थे। सत्ता में रहते हुए, इस मंदिर के नाम पर बड़े आयोजनों का ढोल पीटा जाता था, भोग-भंडारे का आयोजन होता था, और इसे “छत्तीसगढ़ महतारी” की आस्था का केंद्र बना दिया गया था। यही नहीं, मंदिर में प्रतिदिन सुबह-शाम अर्चना करवाई जाती थी, जिसे देखकर कोरबा की जनता ने जयसिंह अग्रवाल को एक धार्मिक और सांस्कृतिक नेता के रूप में स्वीकारा।
चुनाव जीतने के बाद जब अग्रवाल ने कोरबा विधानसभा से लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की और सत्ता में अपनी जगह बनाई, तब भी लोगों ने इसे “छत्तीसगढ़ महतारी” का आशीर्वाद समझा। परंतु, चुनाव में हार के साथ ही उनकी सच्ची आस्था और मंदिर के प्रति उनकी भावनाओं का असली चेहरा सामने आ गया। स्थानीय निवासियों की मानें, तो जब से जयसिंह अग्रवाल चुनाव हारे हैं, इस मंदिर की ओर उन्होंने नजर तक नहीं उठाई। चुनाव हारने के बाद से ही मंदिर का संचालन बाधित हो गया है। पहले जहाँ हर रोज सुबह-शाम पूजा होती थी, अब मंदिर के कपाट बंद पड़े हैं और वहां पूजा-पाठ के लिए पुजारी तक नहीं है।
मंदिर की चाबी संभालने वाले पंडित विकास तिवारी का कहना है कि पहले कुछ समय तक मंदिर का संचालन ठीक से हुआ, लेकिन पिछले छह महीने से पुजारी को 1500 रुपये का वेतन तक नहीं मिला, जिसके चलते उसने पूजा करना भी बंद कर दिया। तिवारी ने बताया कि इस मंदिर का संचालन शांतिदेवी मेमोरियल समिति और छत्तीसगढ़ संस्कृति संवर्धन समिति द्वारा किया जाता है। लेकिन इन समितियों ने मंदिर की देखरेख के लिए एक रुपया भी नहीं दिया। पुजारी को न तो पूजा सामग्री के लिए धनराशि दी गई, न भोग की व्यवस्था की गई और न ही अगरबत्ती जैसे सामान्य वस्तुओं के लिए पैसे उपलब्ध कराए गए। ऐसे में मंदिर में नियमित पूजा-पाठ कैसे हो पाएगा?
जयसिंह अग्रवाल का मंदिर से दूरी बना लेना ही एक बड़ी विडंबना है। लेकिन इससे भी बड़ा आश्चर्य भाजपा नेताओं की उदासीनता है। भाजपा जिलाध्यक्ष राजीव सिंह ने खुद एक टीवी साक्षात्कार में स्वीकार किया कि उन्हें इस मंदिर के अस्तित्व की जानकारी नहीं थी। एक नेता, जो “भारत माता की जय” और “छत्तीसगढ़ महतारी की जय” के नारे लगाकर अपने भाषण की शुरुआत करता है, उसे राज्य के एकमात्र छत्तीसगढ़ महतारी मंदिर के बारे में ही नहीं पता। राजीव सिंह ने प्रशासन से मंदिर को खुलवाने की मांग तो की है, लेकिन प्रश्न यह है कि यदि मंदिर खुलता है तो क्या वे वहां जाकर श्रद्धा अर्पित करेंगे? उनकी जानकारी की कमी और मंदिर की उपेक्षा से यह साफ दिखता है कि भाजपा भी सत्ता में आते ही इस मंदिर के प्रति उदासीन हो गई है।
इस पूरे घटनाक्रम में जयसिंह अग्रवाल और भाजपा नेताओं दोनों की उदासीनता से छत्तीसगढ़ महतारी की आस्था का उपहास होता नजर आ रहा है। जो मंदिर कभी राजनेताओं के लिए आस्था और शक्ति का प्रतीक था, चुनाव के बाद अब वह केवल बंद पड़े ताले और जमी हुई धूल का प्रतीक बन गया है। जनता के बीच यह चर्चा है कि यदि नेता इस मंदिर को लेकर गंभीर नहीं हैं, तो उन्हें मंदिर के संचालन का जिम्मा प्रशासन को सौंप देना चाहिए।
जयसिंह अग्रवाल का छत्तीसगढ़ महतारी मंदिर से दूरी बना लेना और भाजपा नेताओं का इसके बारे में अनभिज्ञ होना यह दर्शाता है कि नेताओं की आस्था और भक्तिभावना केवल सत्ता प्राप्ति तक ही सीमित है। जब तक मंदिर राजनीतिक लाभ दिलाता रहा, तब तक इसे पूजा-पाठ, भोग-भंडारे का केंद्र बनाकर रखा गया। लेकिन सत्ता से बेदखल होते ही इस मंदिर को और जनता की आस्था को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया।
छत्तीसगढ़ के स्थापना दिवस पर इस मंदिर की उपेक्षा राज्य की सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक आस्था के प्रति नेताओं के असली रवैये को दर्शाती है। छत्तीसगढ़ महतारी का यह मंदिर केवल एक इमारत नहीं, बल्कि जनता की आस्था का प्रतीक है। यदि जयसिंह अग्रवाल और उनकी समिति इसे संभालने में असमर्थ हैं, तो उन्हें इसे प्रशासन के सुपुर्द कर देना चाहिए ताकि इसकी गरिमा बनी रहे।
कोरबा की जनता को यह समझना होगा कि नेताओं की आस्था जनता के प्रति नहीं, बल्कि अपनी सत्ता और लाभ के प्रति होती है। जयसिंह अग्रवाल का मंदिर से किनारा करना, भाजपा नेताओं का मंदिर के बारे में अनभिज्ञ होना, और राज्य स्थापना दिवस के मौके पर इस मंदिर की अनदेखी यह स्पष्ट संदेश देती है कि नेताओं की श्रद्धा केवल सत्ता तक सीमित है। जनता को ऐसे नेताओं से सावधान रहना चाहिए जो धर्म और आस्था का केवल चुनावी लाभ के लिए उपयोग करते हैं और बाद में उन्हें भूल जाते हैं।
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