
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने मौजूदा ADM और (तत्कालीन भू-अर्जन अधिकारी) तीर्थराज अग्रवाल को बड़ी राहत देते हुए उनके खिलाफ भूमि अधिग्रहण से जुड़े बहुचर्चित प्रकरण में जारी आरोप पत्र को निरस्त कर दिया है। न्यायमूर्ति अरविंद कुमार वर्मा की अदालत ने स्पष्ट कहा कि अग्रवाल के खिलाफ न तो कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य है, न FIR में नाम, और न ही गवाहों के बयानों में उनका उल्लेख।
यह याचिका अधिवक्ता मतीन सिद्दीकी और अधिवक्ता राजीव श्रीवास्तव के माध्यम से दाखिल की गई थी। याचिकाकर्ता ने अदालत से गुहार लगाई थी कि उन्हें केवल एक प्रशासनिक प्रक्रिया में किया गया कार्य के लिए आपराधिक रूप से घसीटा जा रहा है।
क्या थे आरोप ?
मामला वर्ष 2011–2013 के दौरान रायगढ़ जिले के तहसील पुसौर के ग्राम झीलगिटार में हुए भूमि अधिग्रहण से जुड़ा है। NTPC परियोजना हेतु भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया के दौरान तत्कालीन भू-अर्जन अधिकारी तीर्थराज अग्रवाल पर यह आरोप लगाया गया था कि उन्होंने फर्जी खातेदारों को बिना दस्तावेजों की जांच किए चेक जारी कर दिए।
जांच में पाया गया कि कुछ लोगों ने जाति छुपाकर और फर्जी खाता खोलकर मुआवजा राशि प्राप्त की। आरोप था कि तत्कालीन पटवारी, सरपंच और तहसीलदार ने मिलकर फर्जी बंटवारे और ऋण पुस्तिकाएं बनाईं, जिनके आधार पर भुगतान हुआ। इसी आधार पर थाना पुसौर में FIR क्रमांक 79/2014 दर्ज हुआ और प्रकरण क्रमांक 1128/2014 में आरोप पत्र दाखिल किया गया।
क्या थे याचिकाकर्ता के तर्क ?
अधिवक्ता मतीन सिद्दीकी और राजीव श्रीवास्तव ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि अग्रवाल द्वारा पारित अवार्ड एक ‘क्वासी-ज्यूडिशियल’ (अर्ध-न्यायिक) प्रक्रिया थी, जो कि जज प्रोटेक्शन एक्ट, 1985 की धारा 2 और 3 के अंतर्गत सुरक्षित है।
इसके अलावा:
- FIR में तीर्थराज अग्रवाल का नाम नहीं था
- धारा 161 CrPC के तहत किसी भी गवाह ने उनके विरुद्ध कुछ नहीं कहा
- कोई प्रत्यक्ष दस्तावेजी साक्ष्य नहीं था
- और सबसे अहम, छत्तीसगढ़ शासन के सामान्य प्रशासन विभाग ने 20 नवंबर 2024 को विभागीय जांच को समाप्त कर दिया था।
हाई कोर्ट का निर्णय
इन सभी तथ्यों पर विचार करते हुए, हाई कोर्ट ने स्पष्ट रूप से माना कि आरोप टिकाऊ नहीं हैं और अभियोजन केवल अनुमानों पर आधारित है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के कार्यक्षेत्र में किया गया कोई निर्णय, जब तक दुर्भावनापूर्ण नहीं हो, आपराधिक साजिश नहीं माना जा सकता। इसी आधार पर भारतीय दंड संहिता की धाराएं 420, 467, 468, 471, 506B, 120B और 34 के तहत लगाए गए सभी आरोप निरस्त कर दिए गए और तीर्थराज अग्रवाल को मामले से पूरी तरह मुक्त कर दिया गया।