कोरबा: IAS संजीव झा और रानू साहू के कार्यकाल में DMF (जिला खनिज निधि) से करोड़ों की योजनाओं का खुलासा
अब धीरे-धीरे सामने आ रहा है। ये योजनाएं किसके भले के लिए बनाई गईं? और क्या सच में ये योजनाएं जरूरतमंदों तक पहुंची? घोटाले की परतें खुल रही हैं, और ये सवाल उठता है कि आखिर इन योजनाओं का असली फायदा किसे मिला?
रानू साहू का मायाजाल: करोड़ों की बर्बादी
जब रानू साहू कलेक्टर थीं, तो DMF से जुड़ीं कई योजनाओं पर बेशुमार पैसा बहाया गया, लेकिन जिनके नाम पर ये योजनाएं थीं, उन्हें इनका कोई फायदा नहीं मिला। रानू की करीबी माया वारियर (आदिवासी विकास विभाग की सहायक आयुक्त) के इशारे पर ईडी के नामजद आरोपी अम्बिकापुर के ठेकेदारों मुकेश अग्रवाल और अशोक अग्रवाल को लाखों-करोड़ों के सप्लाई आर्डर दिए गए। छात्रावासों में रहने वाले आदिवासी बच्चों के नाम पर खेल सामग्री और परिधान का घोटाला किया गया।
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1. खेल सामग्री, जूते, मोजे – नाम बड़े, लेकिन दरशन छोटे:
- खर्च: ₹1 करोड़ 13 लाख 97 हजार
- छात्रों के लिए खेल सामग्री, जूते और मोजे खरीदे गए, लेकिन इनका वितरण सही तरीके से नहीं हुआ। जिन बच्चों तक सामान पहुंचा भी, उनके लिए सामग्री की गुणवत्ता और वितरण प्रक्रिया पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
2. खेल सामग्रियां – सिर्फ दिखावा:
- खर्च: ₹1 करोड़ 28 लाख 23 हजार
- फुटबॉल, क्रिकेट किट, बैडमिंटन जैसे खेल सामग्रियों का वितरण किया गया। परंतु जांच में पाया गया कि अधिकांश सामग्री या तो घटिया निकली या छात्रों तक पहुंची ही नहीं। यह सारा खेल केवल कागजों तक ही सीमित था।
3. स्पोर्ट्स लोअर, टी-शर्ट, शॉर्ट्स – बच्चों के हक़ पर डाका:
- खर्च: ₹1 करोड़ 49 लाख
- खेल परिधान के रूप में बच्चों को लोअर, टी-शर्ट और शॉर्ट्स दिए गए थे, लेकिन कई बच्चों को उनके साइज के कपड़े नहीं मिले, जबकि कुछ को कुछ भी नहीं मिला।
4. दैनिक उपयोग की वस्तुएं – जरूरत के नाम पर बर्बादी:
- तारीख: 13/05/22
- खर्च: ₹1 करोड़ 9 लाख 68 हजार
- प्रयास/एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालयों में विद्यार्थियों के लिए दैनिक उपयोग की आवश्यक वस्तुओं का प्रदाय किया गया, लेकिन क्या यह जरूरत थी, यह संदेहास्पद है।
5. शिक्षा हेतु सामग्री – कागजों पर ही सही:
- तारीख: 17/05/22
- खर्च: ₹1 करोड़ 20 लाख 64 हजार
- प्रयास/एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालयों में विद्यार्थियों के लिए एजुकेशनल क्रियाकलापों हेतु पुस्तक और स्टेशनरी प्रदाय की गई, लेकिन इनकी असली पहुंच क्या थी?
6. लैब सामग्री और फर्नीचर – कितने काम आए?:
- तारीख: 17/05/22
- खर्च: ₹11 लाख (लैब सामग्री)
- तारीख: 17/05/22
- खर्च: ₹14 लाख (फर्नीचर सेट)
- क्या यह फर्नीचर और सामग्री असल में स्कूलों में पहुंची और बच्चों को लाभ मिला, यह एक बड़ा प्रश्न है।
रानू साहू ने 27 जून 2022 को जाते-जाते खेल सामग्री के वितरण का आदेश दिया। इसका फायदा अगले कलेक्टर IAS संजीव झा ने उठाया, जिन्होंने कार्य की गति और बढ़ा दी।
संजीव झा की रफ्तार – घोटालों की गहराई
जब IAS संजीव झा ने कलेक्टर का पदभार संभाला, तो उन्होंने योजनाओं को न केवल जारी रखा, बल्कि और नई योजनाओं को मंजूरी दी। लेकिन इन योजनाओं के पीछे का सच बेहद धुंधला है।
1. सोलर लाइट्स का खेल – अंधेरे में उजाला:
- तारीख: 25 मई 2023
- खर्च: ₹60 लाख प्रति विकासखंड (कुल ₹3 करोड़)
- आदिवासी इलाकों में सोलर लाइट्स लगाने का दावा किया गया, लेकिन हकीकत ये है कि ये लाइट्स शायद ही किसी के घर तक पहुंची हों। सरकारी कागजों पर रोशन होने वाली ये लाइट्स, जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं।
2. स्टेनलेस स्टील वाटर टैंक – दिखावे का ढोंग:
- तारीख: 20 मई 2023
- खर्च: ₹59.68 लाख प्रति विकासखंड (कुल ₹3 करोड़)
- वाटर टैंक लगाए गए, पर स्वच्छ पानी की समस्या वही की वही रही। अब ये वाटर टैंक कहां गए, इसका जवाब किसी के पास नहीं।
3. मिनी लाइब्रेरी – किताबें तो आईं, लेकिन बच्चे कहाँ?:
- तारीख: 2 जून 2023
- खर्च: ₹99 लाख प्रति विकासखंड (कुल ₹5 करोड़)
- छात्रावासों में मिनी लाइब्रेरी खोलने का आदेश जारी किया गया। सवाल यह है कि किताबें आईं तो सही, लेकिन उनका इस्तेमाल कौन कर रहा है?
4. सांस्कृतिक सामाग्री – दिखावे की चमक:
- तारीख: 01/06/2023
- खर्च: ₹64 लाख प्रति विकासखंड (कुल ₹3 करोड़ 20 लाख)
- छात्रावासों और देवगुड़ी स्थलों में सांस्कृतिक सामाग्री का प्रदाय किया गया। परंतु ये सामग्रियां क्या सच में छात्रों के लिए उपयोगी रहीं, यह सवाल बना हुआ है।
5. गद्दा, तकिया और मच्छरदानी – क्या हकीकत में पहुंची?:
- तारीख: 02/06/2023
- खर्च: ₹80.10 लाख प्रति विकासखंड (कुल ₹4 करोड़ 50 हजार)
- छात्रावासों में गद्दा, तकिया, और मच्छरदानी वितरित करने का दावा किया गया, लेकिन वास्तविकता क्या थी?
6. ट्रॉली एयर बैग और स्कूल बैग – कितना लाभ हुआ?:
तारीख: 30/05/23
खर्च: ₹89.10 लाख प्रति विकासखंड (कुल ₹4 करोड़ 45 लाख 50 हजार)
छात्रावास/आश्रमों में ट्राली एयर बैग, स्कूल बैग, वाटर बॉटल स्टोरेज एवं बेगेजिंग कीट प्रदाय किया गया, लेकिन ये बच्चों तक कितनी जल्दी पहुंचे, यह एक बड़ा प्रश्न है।
इन योजनाओं में करोड़ों की राशि लगाई गई, लेकिन हकीकत जमीनी तौर पर कुछ और ही है। इन घोटालों का असली चेहरा धीरे-धीरे सामने आ रहा है, जिससे यह साफ है कि योजनाओं के पीछे भ्रष्टाचार का जाल बिछा हुआ था।
आखिर असली फायदा किसे हुआ? ये योजनाएं क्या वाकई जनता के भले के लिए थीं, या फिर भ्रष्टाचार का पर्दा डालने के लिए? IAS संजीव झा और रानू साहू, दोनों ही DMF घोटाले के केंद्र में हैं। इन योजनाओं का लाभ उठाने वाले असल लोग कौन थे? ये सवाल अभी भी खड़े हैं।
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नमस्कार
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