कोरबा: IAS को लेकर पहले एक कहावत थी “IAS अगर कहीं फंसता है, तो केवल ज़मीन के मामले में या फिर नौकरी के मामले में।” लेकिन अब भ्रष्टाचार के आरोप में ही IAS को जेल की हवा खानी पड़ रही है। हम बात कर रहे हैं कोरबा में हुए DMF के अनियमित कार्यों की।
संजीव झा की कथा की शुरुआत कोरबा में उनके पदस्थ होने से पहले ही लिखी जा चुकी थी, मतलब रानू साहू के ऐसे कई गैरजरूरी कार्य, जिनकी जरूरत ही नहीं थी, उन्हें कोरबा कलेक्टर रहते हुए संजीव झा ने कंटीन्यू किया। एक कार्य का जिक्र हमने कल किया था, जिसमें बताया था कि कृषि उपकरणों के वितरण का कार्य जनपद पंचायत को दिया गया था। इस कार्य की प्रशासनिक स्वीकृति रानू साहू ने दी थी, लेकिन कार्य के प्रारंभ होने से लेकर भुगतान होने तक का पूरा काम 2011 बैच के IAS और तत्कालीन कोरबा कलेक्टर संजीव झा के समय हुआ है। बताते हैं कि इस कार्य में गड़बड़ी कहां पर है।
रानू साहू का तबादला 28 जून 2022 की रात में कोरबा से रायगढ़ कलेक्टर के रूप में हो गया। 1 जुलाई 2022 को अम्बिकापुर कलेक्टर रहे संजीव झा ने बतौर कोरबा कलेक्टर अपना पदभार ग्रहण कर लिया। लेकिन जाने से पहले या शायद जाने के बाद रानू साहू ने 28 जून को ही या शायद बाद में करते हुए 27 और 28 जून का जिक्र करते हुए DMF के करोड़ों के प्रशासनिक स्वीकृति जारी कर दी। इनमें अधिकांश कार्य माया वारियर के विभाग आदिवासी विकास विभाग, कटघोरा, पाली और पोड़ी-उपरोड़ा जनपद पंचायतों के लिए हुए हैं।
खास बात यह है कि इन कृषि उपकरणों का सप्लायर वहीं संजय शेंडे है, जो अभी DMF घोटाले का नामजद आरोपी है। काम और नाम पहले से तय था, लिहाजा जनपदों ने भी 28 तारीख की डेट से संवाद के जरिए NIT (टेंडर हेतु अखबार में विज्ञापन) जारी कर दिया। हालांकि यह तो यकीनन बैक डेट एंट्री लगती है, क्योंकि यह NIT संवाद को 28 जून की जगह 14 जुलाई को मिली थी। NIT लगवाने में भी जनपद CEO ने बड़ा खेल किया, एक स्थानीय अखबार के अलावा बाकायदा प. बंगाल के एक बंगाली भाषी समाचार पत्र “वर्धमान, कोलकाता” को जारी किया गया। संवाद को जारी पत्र में बाकायदा इसकी सिफारिश करते हुए इन्हीं चुनिंदा समाचार पत्रों में टेंडर विज्ञापन जारी करने का आग्रह था।
इस टेंडर में तीन फर्मों ने भाग लिया:
- विराज कंस्ट्रक्शन – अजय कुमार हिरुकर, बिलासपुर
- ज्योति ट्रेडिंग – संजय शेंडे, बिलासपुर
- क्लिफ्फो ट्रेडिंग कंपनी – ज्योति शेंडे (संजय की पत्नी)
इत्तिफाक से ये तीनों बिलासपुर की एक ही कॉलोनी में रहते थे। इनके CA भी एक ही हैं, मनोज कुमार अग्रवाल। सबसे बड़ा इत्तिफाक यह था कि जहां से इन्होंने शपथ हेतु स्टाम्प खरीदा, वह भी तीनों का स्टाम्प वेंडर एक ही था, और नोटरी भी तीनों ने अलग-अलग दिन जरूर कराई, लेकिन एक ही नोटरी से कराई। शायद टेंडर फार्म लेने और जमा करने भी एक ही गाड़ी से पहुंचे होंगे, पर इसका कोई प्रमाण नहीं है। इनकी दरों में भी कोई खास अंतर नहीं था, लिहाजा यहां प्रतियोगिता थी ही नहीं। इस कार्य को क्लिफ्फो ट्रेडिंग कंपनी को दे दिया गया। सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि 3 जनपद और आदिवासी आयुक्त कार्यालय में आदिवासी परिवारों को इनके द्वारा 42,716 की दर से कृषि उपकरण प्रदान किए गए।
आरोप है कि कई परिवारों ने तो इन उपकरणों के साथ महज तस्वीरें खिंचवाईं, बाकी वितरण जैसा कुछ हुआ ही नहीं। यह मसला भौतिक सत्यापन का है, जिसे सक्षम अधिकारी ही बेहतर कर सकते हैं। हमारी जांच में 70% लोगों को उपकरण प्राप्त ही नहीं हुए। चंद रुपये देकर उनसे संतुष्टि प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर करा लिया गया है। 42,716 रुपये का यही कृषि उपकरण कोरबा के बाजार में 17 से 18 हजार रुपये के खुदरा मूल्य पर उपलब्ध है, जबकि थोक में इसका दाम 15 हजार से अधिक नहीं आएगा। यहां संख्या 5 हजार से पार थी। मतलब 20 करोड़ से अधिक का पेमेंट उस कंपनी को हुआ, जिसके मालिक का आयकर प्रमाणपत्र यह कहता है कि इस कार्य से पहले उसका सालाना टर्नओवर 12 लाख के करीब था।
एक और खास बात इस टेंडर से जुड़ी हुई है, यह टेंडर 29 जुलाई 2022 (शुक्रवार) को खोला गया। शनिवार-रविवार की छुट्टियों को जोड़ लें, तो 31 जुलाई तक टेंडर खुला रहा। L-1 आने के बाद क्लिफ्फो ट्रेडिंग कंपनी के साथ अनुबंध, कार्यादेश समेत तमाम औपचारिकताएं पूरी करने में 7 दिन तो लगे ही होंगे, लेकिन 9वें दिन कार्य पूर्ण होकर बिल जनपद CEO के टेबल पर था। गजब की फुर्ती थी इस सप्लायर में, जिसने इतनी जल्दी खरीदी कर तत्काल वितरण कर दिया। यह पूरा काम कलेक्टर संजीव झा के कार्यकाल में ही हुआ है।
संजीव झा ने रानू साहू की तरह गलती कर अपना समय बर्बाद नहीं किया। दरअसल वाकया कुछ ऐसा है कि रानू साहू ने पदस्थ होने के बाद से ही अपने पूर्ववर्ती कलेक्टर की फाइलों की जांच शुरू कर दी थी। पहले DMF शाखा की फाइल खंगाली, जब कुछ नहीं मिला, तो विभागों से फाइलें मंगाकर जांच की गई। लेकिन वहां भी कुछ नहीं मिला। रानू साहू ने तैश में आकर सभी वेंडरों का भुगतान रोक दिया और पुराने जो भी स्वीकृत कार्य थे, उन्हें बिना किसी कारण के निरस्त कर दिया। कहते हैं कि इस दौरान जिन-जिन वेंडरों ने दर्शन लेकर आशीर्वाद लिया, उनका भुगतान करा दिया गया। लेकिन संजीव झा ने न तो कार्य को देखा, न ही निरस्त किया। उनके सामने ही खेल हो गया और संजय शेंडे आज नामजद आरोपी बना, बयान दर्ज करा रहा है। हालांकि इससे पहले संजय शेंडे एक साल पहले ही जीएसटी घोटाले के आरोप में जेल जा चुका है।
संजीव झा कथा के भाग-3 में हम आपको अंबिकापुर के मुकेश और अशोक अग्रवाल की दास्तान बताएंगे। इसके बाद अबूझमाड़ की भी कहानी सुनाएंगे। बने रहिए ग्राम यात्रा छत्तीसगढ़ न्यूज़ नेटवर्क के साथ…