भारत के लोकतांत्रिक ढांचे और उसकी प्रभावशीलता पर गंभीर सवाल उठते हैं जब महत्वपूर्ण मुद्दों पर कार्यवाही नहीं होती। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले स्थित भारत एल्युमिनियम कंपनी (बाल्को), जो एक निजी बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा संचालित है और जिसमें भारत सरकार की 49% हिस्सेदारी है, ऐसे ही एक विवाद का केंद्र बनी है।
राज्यसभा सांसद सुश्री सरोज पाण्डेय (छत्तीसगढ़) ने बाल्को प्रबंधन के द्वारा भारत सरकार को दिए जाने वाले मुनाफे की हिस्सेदारी के संदर्भ में राज्यसभा में प्रश्न संख्या 2522 के तहत प्रश्न किया था, जिसका उत्तर केन्द्रीय कोयला एवं खान मंत्री श्री प्रहलाद जोशी द्वारा प्रश्न संख्या 2523 के माध्यम से दिया गया था। उत्तर में उल्लेखनीय था कि कोविड काल में कंपनी का मुनाफा काफी बढ़ा था। फिर भी, बाल्को के प्रबंधन और वित्तीय पारदर्शिता पर सवाल उठते रहे हैं।
सुश्री पाण्डेय ने पुनः अगस्त 3, 2022 को राज्यसभा में शून्य काल में मुद्दा उठाया। इस विषय से कई सांसदों ने अपने आपको सम्बद्ध किया, जिनमें:
श्रीमती फूलो देवी नेताम (छत्तीसगढ़)
डॉ. अमर पटनायक (ओडिशा)
डॉ. फौज़िया खान (महाराष्ट्र)
डॉ. संतनु सेन (पश्चिम बंगाल)
श्री संजय सिंह (दिल्ली)
श्री अबीर रंजन बिस्वास (पश्चिम बंगाल)
डॉ. सस्मित पात्रा (ओडिशा)
शामिल हैं।
सुश्री सरोज पाण्डेय द्वारा उठाए गए विषय और जाँच एवं कार्यवाही की मांग थी:
“मैं आज आपके माध्यम से छत्तीसगढ़ के कोरबा में भारत एल्युमिनियम कंपनी की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहती हूँ। भारत एल्युमिनियम कंपनी आज भारत देश की सबसे महत्वपूर्ण कंपनी है और सबसे बड़े उत्पादकों में इसकी गिनती होती है। वर्ष 2000 में भारत की विनिवेश नीति के तहत स्टरलाईट कंपनी को इस कंपनी का 51 प्रतिशत हिस्सा बेच दिया गया था। आज इसकी हिस्सेदारी 51 प्रतिशत है। जब यह 51 प्रतिशत इस कंपनी के पास पहुंचा, तब इसका उत्पादन एक लाख टन था और आज 5 लाख टन उत्पादन होने के बाद भी यह कंपनी वहाँ के स्थानीय लोगों के साथ अन्याय कर रही है। जब इस कंपनी का विस्तार हुआ, तब विस्तार के लिए जो जमीन ली गई, उस जमीन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है। इन्होनें स्थानीय शासन को अंधेरे में रख कर जमीन का आबंटन कराया। मैं सरकार से मांग करना चाहती हूँ कि इन्हें जो जमीन का आबंटन किया गया है, वह स्थानीय शासन द्वारा अवैध तौर पर किया गया है, स्थानीय लोगों को उसका कोई लाभ नहीं हो रहा है। इसलिए इस कंपनी की जाँच होनी चाहिए।”
इसके अतिरिक्त, सुश्री पाण्डेय ने यह भी उल्लेख किया कि:
स्थानीय लोगों को आईटीआई के तहत प्रशिक्षण दिया जाता है, लेकिन उन्हें स्थायी रोजगार नहीं दिया जाता।
बाल्को के दैनिक कार्यों को निजी ठेकेदारों को दिया गया है।
सीएसआर (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) के तहत कंपनी द्वारा किए जाने वाले कार्यों को ऑडिट रिपोर्ट में घाटे में दिखाया जाता है।
इस मामले की गंभीरता इस तथ्य से भी स्थापित होती है कि इसे आठ राज्यसभा सांसदों द्वारा सदन में उठाया गया है, जो लगभग पाँच करोड़ लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
मूल प्रश्न उठते हैं:
क्या देश के आठ सांसदों/पाँच करोड़ लोगों के विषय को गंभीरता से लिया गया?
आंकड़े और तथ्य सब होने के बाद भी क्या कार्यवाही हुई?
क्या कार्यवाही की सूचना सांसदों को दी गई?
इन प्रश्नों के उत्तर अभी तक अप्राप्त हैं। उम्मीद है कि लोकतंत्र के मूल ढांचे के रक्षकों को कहीं अर्थतंत्र के अवतार की लंका का सोने का दीमक न लगा हो, ताकि हमारे महान भारत का लोकतंत्र सिर्फ वाक्य नहीं, एक सोच, पहचान और सिद्धांत के वजूद में स्थापित रहे।