कोरबा के विवादित नेता और छत्तीसगढ़ के पूर्व राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल एक बार फिर सवालों के घेरे में हैं। 2023 के विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद भी उनकी आदतें बदली नहीं हैं। अपनी राजनीतिक धौंस और शक्ति प्रदर्शन के लिए वे अब भी छत्तीसगढ़ शासन का लोगो अपने लेटरहेड पर इस्तेमाल कर रहे हैं, जबकि यह न केवल नैतिकता, बल्कि कानूनी नियमों का भी खुला उल्लंघन है।
मंत्री नहीं, मगर मानसिकता वही
जयसिंह अग्रवाल, जिनका कार्यकाल 2019 से 2023 तक विवादों से घिरा रहा, ने अपनी छवि सुधारने के बजाय हार के बाद भी खुद को ‘मंत्री’ दर्शाने का प्रयास जारी रखा है। चुनाव में जनता द्वारा नकारे जाने के बावजूद, उनका अब भी सरकारी प्रतीकों का उपयोग करना दिखाता है कि वे अपनी ताकत खोने को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं हैं।
“अब आपके दिन गए।”
लेकिन उनके लेटरहेड पर नजर डालें, तो ऐसा लगता है कि उन्होंने जनता के फैसले को ठेंगा दिखा दिया है। उनके लेटरहेड पर ‘पूर्व मंत्री’ लिखने के बावजूद, छत्तीसगढ़ शासन का लोगो अभी भी मौजूद है, जैसे वे अब भी किसी मंत्रालय की कुर्सी पर बैठे हों।
क्या कहता है कानून?
- राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का उपयोग केवल संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों तक सीमित है।
- संवैधानिक पद छोड़ने के बाद कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय प्रतीक का उपयोग नहीं कर सकता।
- इस कानून का उल्लंघन करने पर दोषी को दो वर्ष तक की सजा या ₹5000 जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
अशोक स्तंभ से जुड़ा इतिहास और कानून
अशोक स्तंभ, भारत का राष्ट्रीय प्रतीक, सम्राट अशोक के शासनकाल का प्रतीक है। इसे सारनाथ में स्थापित किया गया था और यह भारतीय गणराज्य की गरिमा और वैधानिकता का प्रतीक है। इसका उपयोग केवल उन्हीं लोगों द्वारा किया जा सकता है, जो संविधान के तहत उच्च पदों पर आसीन हैं।
लेटरहेड का विवाद
हारने के बावजूद, जयसिंह अग्रवाल ने अपने आधिकारिक लेटरहेड में “पूर्व मंत्री” का उल्लेख तो किया, लेकिन छत्तीसगढ़ शासन का लोगो हटाने की आवश्यकता को नज़रअंदाज कर दिया।
विपक्ष का तीखा वार
“जयसिंह अग्रवाल हार चुके हैं, लेकिन उनकी मानसिकता अभी भी ‘राजा’ जैसी है।”
प्रशासन की चुप्पी पर सवाल
यह सवाल उठता है कि प्रशासन और सरकार इस मामले पर चुप क्यों हैं? राष्ट्रीय चिन्ह और प्रतीकों की गरिमा बनाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है। अगर जयसिंह अग्रवाल के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती, तो यह एक खतरनाक उदाहरण पेश करेगा।
अंतिम सवाल: क्या कोई रोक लगाएगा?
अब यह देखना होगा कि छत्तीसगढ़ सरकार और प्रशासन इस पर क्या कदम उठाते हैं। अगर प्रशासन ने चुप्पी साधी, तो यह लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत होगा।
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