रायपुर। पांचवीं विधानसभा का पहला सत्र 4 जनवरी से शुरु होने जा रहा है और अब तक नेता प्रतिपक्ष तय नहीं हो पाया। दरअसल भाजपा विधायकों की संख्या जिस तरह 15 के निराशाजनक आंकड़े में आ सिमटी शायद यही वजह है नेता प्रतिपक्ष को लेकर किसी तरह की हलचल होते नहीं दिख रही।
सन 2000 से 2018 तक चार विधानसभाएं अस्तित्व में आईं। पिछले चार मौकों पर एक बार भाजपा एवं तीन बार कांग्रेस की तरफ से नेता प्रतिपक्ष चुनकर आए। पिछले चारों बार नेता प्रतिपक्ष चुने जाने को लेकर काफी उठापठक मची थी।
यहां तक की सन 2000 में भाजपा की तरफ से नंद कुमार साय नेता प्रतिपक्ष चुने गए तो विरोधी खेमे के लोगों ने एकात्म परिसर में तोड़फोड़ तक मचा दी थी। ठीक इसके विपरीत इस बार भाजपा में सन्नाटा है। कहने को पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक, बृजमोहन अग्रवाल एवं अजय चंद्राकर का नाम नेता प्रतिपक्ष के लिए सामने आते रहा है, लेकिन दिल्ली में अब तक कोई हलचल होते नहीं दिखी।
अब तक दिल्ली से भाजपा आलाकमान व्दारा नेता प्रतिपक्ष चयन के लिए किसी को पर्यवेक्षक बनाकर नहीं भेजा गया। राजनीतिक हल्कों में इसका यही मैसेज जा रहा है कि दिल्ली में बैठे भाजपा नेताओं की निगाहों में छत्तीसगढ़ किस तरह माइनस हो चुका है।
संविधान के जानकारों का कहना है कि किसी भी विधानसभा के उद्घाटन सत्र में जब राज्यपाल का अभिभाषण होता है सदन में नेता प्रतिपक्ष का अस्तित्व में होना जरूरी है। कल सत्र का पहला दिन है। 5 व 6 जनवरी को अवकाश है। फिर 7 जनवरी को राज्यपाल का अभिभाषण होगा। इस तरह संभावना यही बनती दिख रही है कि नेता प्रतिपक्ष का चयन 5 या 6 तारीख में जाकर होगा।
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