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दर-दर भटकने को मजबूर राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र पहाड़ी कोरवा ! फर्जी आदिवासी ने कब्जा किया पुश्तैनी जमीन पर, चार एफआईआर और न्यायालय आदेश के बाद भी मौन है राजस्व विभाग, जांच में फर्जी साबित हुई रंजना सिंह अब भी बैठी है कब्जे पर, चेतन चौधरी के साथ रच रही नया खेल — राजस्व विभाग दे रहा है बार-बार मोहलत

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कोरबा। आदिवासी संवेदनशील क्षेत्र कोरबा में संवेदनाओं की हत्या खुलेआम हो रही है। राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र पहाड़ी कोरवा फिरत राम अपनी पुश्तैनी भूमि वापस पाने के लिए न्यायालयों के चक्कर काटते-काटते थक चुके हैं, पर अब भी कब्जा धारियों पर प्रशासन की मेहरबानी जारी है। दो-दो न्यायालयों में आदेश उनके पक्ष में गए, फर्जी रजिस्ट्री, फर्जी जाति प्रमाणपत्र और धोखाधड़ी के सबूत मिलने के बाद भी राजस्व विभाग की कार्यवाही कछुए की चाल से आगे नहीं बढ़ी।


फर्जी रजिस्ट्री और मृत महिला का नाम

जांच में खुलासा हुआ कि रंजना सिंह ने वर्ष 2007 में “बुंदकुंवर” नामक महिला से रजिस्ट्री कराई, जबकि बुंदकुंवर की मृत्यु वर्ष 1980 में ही हो चुकी थी।
यानी एक मृत महिला के नाम से जमीन खरीदने का फर्जी सौदा रचा गया, और इस पूरे प्रकरण में रंजना सिंह ने फर्जी आदिवासी प्रमाणपत्र का उपयोग किया, जिसे जिला स्तरीय जाति छानबीन समिति ने निलंबित कर दिया है।

फिर भी न तो पुलिस ने गिरफ्तारी की और न ही राजस्व विभाग ने कब्जा हटाने की हिम्मत दिखाई।


चार एफआईआर, फिर भी नहीं हुई कार्रवाई

पीड़ित पहाड़ी कोरवा फिरत राम के अनुसार,
“रंजना सिंह और चेतन चौधरी के खिलाफ चार अलग-अलग प्रकरण दर्ज हैं —
धारा 447, 294, 506, 34 और 451, 295(A) तक के गंभीर अपराधों में भी अब तक गिरफ्तारी नहीं हुई।”

इसके बावजूद ये दोनों आरोपी खुलेआम उसी जमीन पर कब्जा जमाए बैठे हैं, जहाँ कभी फिरत राम का घर और मंदिर था।
रंजना सिंह पर आरोप है कि उसने पहाड़ी कोरवा के देवी-देवताओं की तस्वीरें फेंक दीं, जिससे धार्मिक आस्था को भी ठेस पहुँची।


न्यायालय और अपर कलेक्टर तक से हार चुकी रंजना सिंह

6 अक्टूबर को अपर कलेक्टर कोरबा ने साफ आदेश दिया था कि रंजना सिंह की अपील अस्वीकृत है, क्योंकि उसका जाति प्रमाणपत्र निलंबित है और कोई स्थगन आदेश प्राप्त नहीं हुआ।
फिर भी तहसीलदार कार्यालय ने अब तक बेदखली की अंतिम कार्रवाई नहीं की।

स्थानीय सूत्रों का कहना है कि हर बार जब कार्रवाई तय होती है, किसी “प्रभावशाली व्यक्ति का फोन” आता है और अधिकारी पीछे हट जाते हैं।


पुंजीपतियों पर मेहरबान राजस्व विभाग ?

जिले में चर्चा है कि राजस्व विभाग जानबूझकर मोहलत देने का खेल खेल रहा है।
हर बार किसी न किसी बहाने से तारीख आगे बढ़ा दी जाती है ताकि रंजना सिंह और चेतन चौधरी को “कहीं और हाथ-पैर मारने” का समय मिल सके।
लोग सवाल उठा रहे हैं —
“जब सभी अदालतों ने पहाड़ी कोरवा को सही ठहराया है, तब भी कब्जा क्यों बरकरार है ?”
“क्या यह सुशासन है, या फिर सत्ता और पैसे का खेल ?”


“नहीं मिला सहयोग छत्तीसगढ़ में हमें…”

फिरत राम ने आज फिर कलेक्टर को आवेदन देकर प्राथमिकी दर्ज कराने की मांग की है।


उन्होंने कहा —
“मैं देश के राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र हूँ, लेकिन अपने ही प्रदेश में मुझे न्याय नहीं मिल रहा।
मेरे पास सारे दस्तावेज़ हैं, पर अधिकारी पुंजीपतियों को बचाने में लगे हैं।”


अब जनता पूछ रही है – आखिर कब मिलेगा न्याय ?

राजस्व विभाग की यह चुप्पी अब प्रशासनिक पक्षपात की गवाही बन चुकी है।
जहाँ गरीब पहाड़ी कोरवा अपनी ज़मीन के लिए दर-दर भटक रहा है, वहीं फर्जी दस्तावेज़ों से कब्जा जमाने वाले आराम से घूम रहे हैं।
आमजन का सवाल है —
“क्या यही विष्णु सरकार का सुशासन है, जहाँ असली आदिवासी न्याय के लिए भीख माँग रहा है ?”

 
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