कोरबा।
पूर्व गृहमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता ननकीराम कंवर ने कोरबा कलेक्टर अजीत वसंत को हिटलर कहते भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगाकर तीन दिन में तबादले की मांग कर दी है। उन्होंने यहां तक कह दिया कि मांग पूरी न होने पर वे धरने पर बैठेंगे। लेकिन राजनीतिक हलकों में इस पूरे घटनाक्रम को लेकर गहरी शंका जताई जा रही है।
कंवर ने लगाए आरोप – लेकिन सबूत है कहां ?
ननकीराम कंवर ने एक सरकारी जमीन पर कब्जा करने वाले नूतन राजवाड़े को भाजपा कार्यकर्ता बताकर उसके पेट्रोल पंप सील करने, निजी मकान तोड़ने, पत्रकारों को परेशान करने और करोड़ों के घोटाले करने जैसे आरोपों की लंबी सूची गिना दी। सवाल यह है कि इतने गंभीर मामलों में उन्होंने अब तक कोई ठोस सबूत क्यों नहीं पेश किया ? क्या केवल सुनी-सुनाई बातों के आधार पर कलेक्टर जैसे अधिकारी को कटघरे में खड़ा करना उचित है ? जबकि प्रशासन की हर कार्रवाई सार्वजनिक है कि वह नियमानुसार ही की गई है।
ईमानदार छवि वाले अधिकारी को निशाना
कलेक्टर अजीत वसंत की गिनती अब तक ईमानदार और सख़्त अधिकारियों में होती रही है। कोरबा में उनके कार्यकाल के दौरान कई अवैध कामों पर नकेल कसी गई। यही वजह है कि स्थानीय स्तर पर कई रसूखदार लोगों को परेशानी उठानी पड़ी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कहीं इसी वजह से उन्हें बदनाम करने की साज़िश तो नहीं की जा रही।
फूलछाप कांग्रेसी साज़िश की बू ?
सूत्रों की मानें तो भाजपा में शामिल कुछ फूलछाप कांग्रेसी (भितरघाती) जैसे दलाल प्रवृत्ति के लोग पर्दे के पीछे से इस पूरे विवाद को हवा दे रहे हैं। सवाल यह भी उठता है कि भाजपा संगठन और सरकार के रहते, मजबूत महापौर और मंत्री प्रतिनिधित्व वाले जिले में कोई कलेक्टर मनमानी कर सकता है क्या ? अगर नहीं, तो फिर ननकीराम कंवर को अचानक इस तरह के आरोप लगाने की क्या मजबूरी पड़ी ?
जनता जानना चाहती है सच्चाई
शहर की जनता भली-भांति जानती है कि कांग्रेस शासनकाल में ही कोरबा में डीएमएफ घोटाले, कोयला व रेत माफिया का बोलबाला रहा। यहां तक कि पूर्व कलेक्टर रानू साहू तक जेल भेजी गई थीं। ऐसे हालात में मौजूदा कलेक्टर पर भ्रष्टाचार का ठप्पा लगाना संदेह पैदा करता है।
कंवर के आरोप राजनीतिक साजिश की ओर इशारा करते हैं। सरकार से अपेक्षा है कि इन आरोपों की उच्च स्तरीय जांच कराए और यदि ननकीराम कंवर द्वारा लगाए गए आरोप निराधार साबित होते हैं, तो जनता के सामने सच्चाई साफ़-साफ़ रखी जाए।
ननकीराम कंवर के आरोपों ने भले ही राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर दी हो, लेकिन अब भी कई सवाल अनुत्तरित हैं। ऐसे भी प्रशासनिक हलकों में पिछले कुछ दिनों से यह चर्चा गर्म है कि प्रदेश में कई जिलों के कलेक्टर और एसपी की ट्रांसफर-पोस्टिंग जल्द हो सकती है।
अगर इसी दौरान कोरबा कलेक्टर का तबादला होता है तो क्या यह माना जाएगा कि जिले में सचमुच बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ था ? या फिर इसे सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया के तौर पर देखा जाएगा ? यह भी उतना ही बड़ा सवाल है।
विशेषज्ञों का मानना है कि बिना ठोस जांच और सबूत के किसी कलेक्टर पर हिटलरशाही और भ्रष्टाचार का ठप्पा लगाना न केवल कोरबा बल्कि अन्य जिलों में काम कर रहे ईमानदार अधिकारियों का मनोबल भी तोड़ सकता है। यही वजह है कि शासन और प्रशासन को सबसे पहले वरिष्ठ भाजपा नेता द्वारा लगाए गए आरोपों की गहन जांच करनी चाहिए।
साथ ही, यह भी पता लगाया जाना आवश्यक है कि आखिर भाजपा के वे कौन से कार्यकर्ता हैं जिनका नाम लेकर ननकीराम कंवर ने उत्पीड़न का आरोप लगाया है, और किन विषयों पर कार्रवाई हुई थी। यदि जांच में कलेक्टर दोषी पाए जाते हैं तो उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई उचित होगी। लेकिन यदि आरोप निराधार साबित होते हैं तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि एक ईमानदार अफसर को बदनाम करने के लिए यह सब एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा था।

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