छत्तीसगढ़

स्कूल में चाकू लाकर सहपाठियों को धमकाता है छात्र, शिक्षक भी दहशत में…

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गरियाबंद (ग्रामयात्रा छत्तीसगढ़ )। छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों की दुर्दशा पर उठते सवालों के बीच गरियाबंद जिले से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। जिले के फिंगेश्वर ब्लॉक के सरकड़ा गांव के स्कूल में छठवीं कक्षा का एक 11 वर्षीय छात्र लगातार चाकू लेकर स्कूल पहुंच रहा था, और सहपाठियों तथा शिक्षकों को ‘मार डालने’ की धमकी दे रहा था।

तीन दिन तक स्कूल बैग में रखे चाकू के साथ धमकाता रहा बच्चा

सूत्रों के मुताबिक, छात्र लगातार दो-तीन दिन तक अपने स्कूल बैग में बड़ा चाकू लेकर आता रहा। इस दौरान वह अपने दोस्तों को डराने के साथ-साथ शिक्षकों को भी धमकाने से नहीं चूका। बुधवार को जब स्थिति असहनीय हो गई, तो स्कूल के सभी शिक्षकों ने मिलकर बच्चे को पकड़ा, चाकू जब्त किया और फोटो व वीडियो बनाकर दस्तावेजी सबूत तैयार किया।

चेहरे पर गर्व, डर का नामो-निशान नहीं
बच्चे के फोटो और वीडियो में देखा जा सकता है कि वह हाथ में चाकू लिए गर्व से खड़ा है। न तो उसके चेहरे पर डर है, न ही कोई पछतावा। वीडियो में वह एक चेन पहने, किसी फिल्मी डॉन जैसे अंदाज में नजर आता है। शिक्षकों का कहना है कि छात्र का व्यवहार लंबे समय से आक्रामक और उद्दंड रहा है।

जिम्मेदारी सिर्फ बच्चे की नहीं, पालकों की भी
शिक्षकों और स्थानीय नागरिकों का कहना है कि इतनी कम उम्र में ऐसा व्यवहार पालकों की अनदेखी का भी परिणाम हो सकता है। यदि बच्चा डॉन जैसे अंदाज में स्कूल आ रहा है, चाकू लेकर घूम रहा है, तो यह सिर्फ स्कूल की नहीं, घर की जिम्मेदारी भी बनती है।

“इस उम्र में बच्चा अगर हत्या की धमकी दे रहा है, तो यह एक गहरी सामाजिक और पारिवारिक विफलता का संकेत है,” – एक शिक्षक (नाम गोपनीय)

प्रशासन और शिक्षा विभाग पर भी सवाल
यह मामला सरकारी स्कूलों में निगरानी की कमी, अनुशासनहीनता और शिक्षकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है। पहले ही कई जिलों से शिक्षकों के शराब पीकर स्कूल आने, छात्राओं से छेड़खानी, और प्रबंधन की लापरवाही की खबरें सामने आती रही हैं। अब इस तरह की घटनाएं विद्यालय को अपराध की पाठशाला में बदलने का खतरा बनती जा रही हैं।

अब कार्रवाई की बारी
मामले की जानकारी संबंधित विभागों को दी जा चुकी है। शिक्षकों ने लिखित में रिपोर्ट जमा की है और अब अभिभावकों से बातचीत के साथ-साथ बाल कल्याण समिति के हस्तक्षेप की मांग की जा रही है। साथ ही, मनोवैज्ञानिक परामर्श और काउंसलिंग की जरूरत भी महसूस की जा रही है।

 

 
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